Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : ४९ :
अने सर्वज्ञता वडे ज भगवान शोभे छे–एम कह्युं. अहो, आत्मानी आवी
पूर्णपर्याय केवी महान छे तेने निर्णयमां ल्ये तो रागादि परभावोथी परिणति
छ्रूटी पडी जाय, ने स्वभावसन्मुख परिणमन प्रगटे.–ते ज अपूर्व मंगळ छे.
अहा, आवा मोटा वीतराग भगवान! तमे बिराजो छोने, पछी मारे कोनुं
काम छे! आवडा मोटा वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा मारा ज्ञानमां में स्वीकार्या, तो
हवे मारुं ज्ञान रागमां केम अटके? ते रागने केम भजे? ते तो रागथी छूटुं पडीने
परम वीतराग एवा मोक्षमार्गमां परिणमे छे.
प्रथम गाथामां आचार्यदेवे वीरनाथ जिनेन्द्रने नमस्कार करीने असाधारण
मंगळ कर्युं छे; तेओ कहे छे के अहो! उत्कृष्ट अनंत ज्ञानदर्शनस्वभावने पामेला
भगवान वीरजिनने नमस्कार करीने, हुं श्रुतकेवळी अने केवळीभगवंतोए कहेलुं
आ नियमसार कहीश. नियमसारमां मोक्षनो मार्ग अने तेनुं फळ बतावीश.
समयसारनी टीकामां पण केवळी अने श्रुतकेवळी बंनेनी वात लीधी छे, ने अहीं
नियमसारमां तो मूळसूत्रमां ज
‘केवलि–सुदकेवली भणिदं’ एम स्पष्ट कह्युं छे.
विदेहक्षेत्रमां केवळी अने श्रुतकेवळीभगवंतो साक्षात् बिराजे छे, तेमने नजरे
देखीने अने तेमनी वाणी सांभळीने आचार्यदेवे आ समयसार–नियमसार वगेरे
परमागमोनी रचना करी छे. ते आत्मानुं शुद्धस्वरूप बतावीने, तेना आश्रये
शुद्धरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग प्रगट करावे छे.
अहो, आ नियमसारमां तो आत्मामांथी अनादिना अंधारा दूर करीने
ज्ञान–प्रकाश प्रगटावे एवी अलौकिक वात छे. जुओने, अहीं आपणे आजे
(पोषसुद एकमे) आ नियमसार वांचवुं शरू कर्युं ने बहारमां पण अंधारा टळीने
आजे प्रकाश शरू थयो. (भारत–पाक. युद्धने कारणे ब्लेकआउट–अंधारपट थयेल,
तेमां विजयपूर्वक आजे अंधारपट खुलीने प्रकाश चालु थयो; नियमसार पण
आजे ज शरू थयुं.) चैतन्यना पराक्रममां विक्रांत एवा वीरनाथ जिने चैतन्यनी
वीरतावडे कर्मो उपर विजय मेळव्यो ने मोहांधकार दूर करीने केवळज्ञान प्रकाश
प्रगट कर्यो. आवा विजेता वीरनाथ वर्द्धमान जिनेन्द्र महा देवाधिदेव तीर्थंकर–
तेमने नमस्कार करीए छीए.
नियम एटले रत्नत्रय, तेमां सारभूत एवा शुद्ध रत्नत्रय, तेनुं प्रतिपादन
करनारुं आ शास्त्र सर्वे जीवोने हितकर छे. शुद्धरत्नत्रयरूप मार्गनुं अने तेना
फळनुं कथन जिनशासनमां छे. जुओ, लोको कहे छे के जिनशासनमां कर्मनुं ने
कर्मफळनुं