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पूर्णपर्याय केवी महान छे तेने निर्णयमां ल्ये तो रागादि परभावोथी परिणति
छ्रूटी पडी जाय, ने स्वभावसन्मुख परिणमन प्रगटे.–ते ज अपूर्व मंगळ छे.
हवे मारुं ज्ञान रागमां केम अटके? ते रागने केम भजे? ते तो रागथी छूटुं पडीने
परम वीतराग एवा मोक्षमार्गमां परिणमे छे.
भगवान वीरजिनने नमस्कार करीने, हुं श्रुतकेवळी अने केवळीभगवंतोए कहेलुं
आ नियमसार कहीश. नियमसारमां मोक्षनो मार्ग अने तेनुं फळ बतावीश.
समयसारनी टीकामां पण केवळी अने श्रुतकेवळी बंनेनी वात लीधी छे, ने अहीं
नियमसारमां तो मूळसूत्रमां ज
देखीने अने तेमनी वाणी सांभळीने आचार्यदेवे आ समयसार–नियमसार वगेरे
परमागमोनी रचना करी छे. ते आत्मानुं शुद्धस्वरूप बतावीने, तेना आश्रये
शुद्धरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग प्रगट करावे छे.
(पोषसुद एकमे) आ नियमसार वांचवुं शरू कर्युं ने बहारमां पण अंधारा टळीने
आजे प्रकाश शरू थयो. (भारत–पाक. युद्धने कारणे ब्लेकआउट–अंधारपट थयेल,
तेमां विजयपूर्वक आजे अंधारपट खुलीने प्रकाश चालु थयो; नियमसार पण
आजे ज शरू थयुं.) चैतन्यना पराक्रममां विक्रांत एवा वीरनाथ जिने चैतन्यनी
वीरतावडे कर्मो उपर विजय मेळव्यो ने मोहांधकार दूर करीने केवळज्ञान प्रकाश
प्रगट कर्यो. आवा विजेता वीरनाथ वर्द्धमान जिनेन्द्र महा देवाधिदेव तीर्थंकर–
तेमने नमस्कार करीए छीए.
फळनुं कथन जिनशासनमां छे. जुओ, लोको कहे छे के जिनशासनमां कर्मनुं ने
कर्मफळनुं