Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
उपकार; पण ते उपदेश झील्यो कोणे? पोते पात्र थईने स्वानुभववडे ते उपदेश झील्यो,–
एम पोतानां भाव सहितनी वात छे. अपूर्व चैतन्यरस समयसारमां घोळ्‌यो छे.
[प्रवचनमां वच्चे–वच्चे गुरुदेव महाप्रमोदथी वारंवार आचार्यप्रभुनो महिमा
करे छे; समयसारमांथी अनुभूतिना अद्भुत भावो खोलतां अति प्रसन्नताथी कहे छे
के अहा! आवुं समयसार सांभळवुं ते पण जींदगीनो एक लहावो छे. अरे, ‘सांभळवुं’
ते पण लहावो छे, तो तेवी अनुभूति प्रगटे एनी तो शी वात? वाह रे वाह!
श्रीगुरुओए अमारा उपर अत्यंत महेरबानी करीने अमने शुद्धात्मानी अनुभूति
करावी छे. श्रीगुरुनी प्रसन्नताथी अमने अमारो निजवैभव प्रगट्यो छे.
]
‘अहा, आत्मामां निरंतर सुंदर आनंदनुं मधुरुं झरणुं झरे छे...अतीन्द्रिय
आनंदनो प्रवाह अमारी परिणतिमां निरंतर वहे छे.’–जुओ, आवा स्वानुभवपूर्वकनी
वाणी आ समयसारमां छे. साधकनी अनुभूतिमां आनंदनी लहेर छे. अमारा आत्मानुं
स्वसंवेदन अतीन्द्रिय आनंदनी छापवाळुं छे. जगतना कोईपण पदार्थमां सुखनी
कल्पना छूटी गई, ने आत्मानो महान आनंद अमने प्रगट्यो. आत्माना आवा
वैभवपूर्वक हुं एकत्व–विभक्त आत्मा देखाडीश, तेने तमे स्वानुभवथी प्रत्यक्ष करीने
प्रमाण करजो.
वाह! चैतन्यनो मीठो स्वाद...एनी शी वात! एवा मीठा स्वादथी भरेलुं एक
चैतन्यतत्त्व हुं तमने देखाडुं छुं. अमारा आत्मानी परिणति आनंदमय थयेली छे,
अनादिना विभाव–कलेश तेनाथी अमे छूट्या छीए ने आनंदनी धारामां आव्या छीए.
विभावनो कलेश छूटीने आनंदमय वैभव अमने प्रगट्यो छे. –आवा वैभव वडे हुं
शुद्धात्मा बतावीश. शुद्धात्मा अचिंत्य महिमावाळी वस्तु, तेने गमे तेवा (स्वानुभव
वगरना) जीवो बतावी शके नहि, आवो आत्मवैभव जेने पोतामां प्रगट्यो होय ते ज
शुद्धआत्मानुं स्वरूप देखाडी शके.
सम्यग्दर्शन थतां ज आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनी महोर लागी जाय छे,
आत्मवैभव खीली जाय छे. आ समयसार तो अतीन्द्रिय आनंदरूपे परिणमेला जीवोना
रदयमांथी नीकळेलुं महान शास्त्र छे. अहा, भाग्यवान जीवोने माटे आ भागवतशास्त्र
रचाई गयुं छे. संतोना आत्माना वैभवमांथी नीकळेला शुद्धात्मानुं आवुं श्रवण कोई
अपूर्व महाभाग्ये मळे छे. एनां भावो झीलनार जीवने, ज्ञान अने राग वच्चे तीराड
पडीने अंदरथी अतीन्द्रिय आनंद झरे छे...ने ते भवनो अंत करीने अशरीरी सिद्धपदने
पामे छे.
जय समयसार