Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 49

background image
: माह : २४९८ आत्मधर्म : १५ :
आनंदना प्यासी जीवोने माटे संतोए मांडी छे––
परमआनंदनी परब
ज मने सुख थशे; माटे ते परम तत्त्व मने बतावो.
(बेसतुं वर्ष तथा भाईबीजना प्रवचनमांथी : सं. २०२१)
शास्त्रना प्रारंभमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार करीने. प्रभाकर
उपदेश आपो. जगतमां तो क्यांय में सुख न देख्युं, मने मारा
परमतत्त्वमांथी ज सुख मळशे––एवा विश्वासपूर्वक शिष्य कहे छे के हे प्रभो!
अनुग्रहपूर्वक एवा कोई परम तत्त्वनो उपदेश आपो के जेने जाणवाथी मने
मारा चैतन्यनुं उत्तम सुख मळे.
जेम बेसतावर्षे महापुरुष–धर्माक्षना आशीर्वाद लईए छीए, तेम
अहीं शिष्य पोताना आत्मामां आनंदनुं नवुं वर्ष बेसाडवा माटे श्री गुरु
पासे विनयथी आशीर्वाद मांगे छे ने विनवे छे के हे स्वामी! प्रसन्न थईने
मने परम तत्त्व समजावो...के जे परम तत्त्वने समजतां मने सुखनो अनुभव
थाय. अत्यार सुधी संसारमां रखडतां में घणां–घणां दुःख भोगव्यां, सुख तो
मने क्यांय न मळ्‌युं...परमात्म तत्त्वने न जाण्युं तेथी ज हुं दुःखी थयो, तो हे
स्वामी! हवे कृपा करीने आप ते परमात्मतत्त्वनो एवो उपदेश आपो के जेने
जाणीने हुं सिद्धसुख पामुं ने आ संसारदुःखथी छूटुं.
दुःखथी छूटवा माटे हृदयनी दर्दभरी विनति करे छे––प्रभो! मारे बीजुं
कांई नथी जोईतुं, एक चैतन्यसुखनी प्राप्ति केम थाय ते ज बतावो. जुओ,
आ पात्र शिष्यनो पोकार! दरेक जिज्ञासुना अंतरमां केवी भावना