: माह : २४९८ आत्मधर्म : १७ :
बीजाुं कांई मारे नथी जोईतुं – एक आत्मा ज जाणवो छे
के जेने जाणवाथी सुखनो अनुभव थाय.
(१६मा पानांनो लेख चालु)
आत्मज्ञान सिवाय जगतमां कांई सार नथी. भरत जेवा चक्रवर्ती के
स्वर्गना ईन्द्र पण शुद्धआत्माने ज सार समजीने, तीर्थंकरभगवान पासे
विनयथी एनुं ज स्वरूप पूछे छे, ने बहुमानथी सांभळे छे. प्रभो! जगतमां
सौथी उत्तम ने आदरणीय जे शुद्धात्मा ते केवो छे? पोताने तेनुं भान होय
तोपण मुमुक्षु जीवो भगवान पासे मुनिराज पासे जईने फरीफरीने आदरपूर्वक
तेनुं स्वरूप सांभळे छे. अहीं (परमात्मप्रकाशमां) प्रभाकर भट्ट पण ए ज
वात पूछे छे, अने तेने परमात्मानुं स्वरूप समजावे छे. (दरेक जिज्ञासुशिष्ये
पोताने प्रभाकर भट्टना स्थाने ज समजवो.)
जुओ तो खरा, शुद्धात्माना जिज्ञासुने माटे उत्कृष्ट दाखलो ठेठ
भरतचक्रवर्तीनो आप्यो. जेम ऋषभदेवनी सभामां भरतचक्रवर्तीए
शुद्धात्मानुं स्वरूप पूछ्युं हतुं तेम अहीं संसारथी भयभीत थईने आत्माना
सुखने माटे प्रभाकर भट्ट योगीन्दुदेवने विनयथी ते ज वात पूछे छे.
शुद्धात्मानी आराधनारूप रत्नत्रय जेने प्रिय छे एवा जीवो ज्ञानी पासे तेनो
ज प्रश्न पूछे छे. वाह! श्रोता एवा छे के जेने प्रियमां प्रिय आत्मा छे,
आत्माना रत्नत्रय जेने प्रिय छे, व्यवहारमां पंचपरमेष्ठीनी भक्ति प्रिय छे;
ए सिवाय संसारमां बीजुं कांई जेने प्रिय नथी, जेओ चैतन्यना वीतराग
निर्विकल्प आनंदरसना प्यासा छे, अने जेमने रागनी के पुण्य–वैभवनी
पिपासा नथी. प्रवचनसारमां कहे छे के ‘परम आनंदना पिपासु भव्यजीवोने
माटे आ टीका रचाय छे. समाधिशतकमां कहे छे के कैवल्यसुखनी स्पृहावाळा
जीवोने माटे परथी विभक्त आत्मानुं स्वरूप कहेवामां आवे छे. जुओ तो
खरा, संतोए तो परम आनंदनां परब मांड्या छे. जेम भरउनाळामां
तृषातूरने माटे ठंडा पाणीनां परब मंडाया होय त्यां तरस्या जीवो प्रेमथी
आवीने पाणी पीए छे ने तेनुं हृदय ठरे छे; तेम संसार–भ्रमणरूपी
भरउनाळामां रखडी–रखडीने