Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९८ आत्मधर्म : १९ :
तारो साचो वैभव
सर्वोत्कृष्ट छे, एनाथी ऊंचुं बीजुं कांई नथी.––एम जाणीने
हे जीव! तुं तेने एकने ज भज, ने बीजुं बधुं तज.––‘एकं
भज सर्व त्यज।’
साधक कहे छे के हे जिनेन्द्र! हुं स्वर्गादिमां गमे त्यां होईश तोपण आपना
चरणनी भक्ति नहींं छोडुं, आपे बतावेला मार्गनी श्रद्धा हुं नहीं छोडुं. पुण्य–पापथी
पार जे चैतन्यतत्त्व प्रतीतमां लीधुं छे, तेनी शांतिनो स्वाद चाख्यो छे, ते चैतन्यनो प्रेम
हवे कदी छूटवानो नथी. वच्चे एकाद भव थशे ने स्वर्गादिना वैभवनो संयोग आवशे,
पण अमने तेनो प्रेम थवानो नथी; अमारा चैतन्यतत्त्वथी ऊंचुं कांई जगतमां नथी.
जे जीव राजा–महाराजाना अनेकविध महा वैभवने सांभळीने के देखीने तेनी
अभिलाषा करे छे, तेने आचार्यदेव कहे छे के अरे! तुं जडमति छो. चैतन्यना परम
वैभवने भूलीने तुं पुण्यनां फळरूप जड वैभवनी वांछा करे छे, तो तुं जडमति
छो...तारी बुद्धि जडमां रोकाई गई छे, ने तेथी तुं नकामो कलेश ज पामे छे. अरे,
केवळज्ञानादि अनंत कार्यना कारणरूप थाय एवो गंभीर तारो चैतन्यस्वभाव, ते
चैतन्यना अपार अद्भुत वैभवनी वात तने संभळावी, ते सांभळीने तेनो तने
उमळको केम नथी आवतो अने बहारना वैभवनी वात सांभळीने तेनो उल्लास केम
आवे छे? अमुक राजाने आवी मोटर, आवा बंगला, आवी राणी, अबजो रूपियानी
रोजनी आवक एवा बाह्यवैभवनी वात सांभळतां धर्मीने तो एम थाय के अरे,
चैतन्यना वैभव पासे ए बधानी शी गणतरी छे! बहारना गमे तेटला वैभव भेगा
थाय, आखी दुनियाना जडवैभव भेगा थाय तोपण मारा चैतन्यना वैभवनी अपूर्व
शांतिनो एक अंश पण तेमांथी न मळे. अज्ञानी तो ते बहारना वैभवनी वात
सांभळतां आश्चर्य पामे छे...केमके चैतन्यना अलौकिक वैभवनी तेने खबर नथी. अरे,
चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनी तो शी वात! पण जिनमार्ग प्रत्येनी भक्तिना एक
शुभविकल्पथी जे पुण्य