नथी, ते तो विभाव छे, एटले कर्मना निमित्त विना आत्मा कदी कषायरूप थतो नथी.
आ रीते ज्ञान अने कषायनुं भिन्नपणुं जाणवुं.
ज्ञानदर्शनादि जीवगुणोनो विनाश नथी थतो; जो जीवना गुणोनो विनाश थाय तो
ज्ञानादिनी जेम जीवनो पण विनाश थई जाय! माटे जेम ज्ञानादिगुणोनो विनाश नथी
थतो तेम कषाय पण जीवगुण होवाथी तेनो विनाश न थवो जोईए.–एटले
कषायभावनां स्थानो बनी शकतां नथी!
कांई जीवनुं लक्षण नथी; कर्मजनित कषायने जीवनुं लक्षण मानवामां विरोध आवे छे.
अने, कषायोनुं कर्मजनितपणुं असिद्ध नथी केमके कषायोनी वृद्धि थतां जीवना
लक्षणभूत ज्ञाननी हानि थाय छे–ते बीजी रीते बनी शके नहीं; माटे कषाय कर्मजनित
छे (ज्ञानजनित नथी) ने ते जीवनो गुण नथी, तेथी तेनो अभाव बनी शके छे.
कषाय तो ज्ञाननो विरोधी छे; एकगुण बीजा गुणनो विरोधी (घातक) होई शके
नहि, केमके कोई गुणमां एम जोवामां आवतुं नथी. माटे ज्ञानादि जेम जीवनां
लक्षणभूत गुण छे तेम कषायो ते जीवनां गुण नथी. माटे कषायरहित एवा
अकषायभावरूप स्थानो बनी शके छे.