Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९८ आत्मधर्म : २१ :
ज्ञान अने कषायनी भिन्नतानी सिद्धि
• कषाय जीवनुं लक्षण नथी तेथी अकषायपणुं बनी शके छे •
ज्ञान आत्मानो सहज स्वभाव छे, एटले कर्मना निमित्त विना स्वयमेव
आत्मा ज्ञानपणे वर्ते छे; परंतु ज्ञाननी जेम कषाय ते कांई आत्मानो सहज स्वभाव
नथी, ते तो विभाव छे, एटले कर्मना निमित्त विना आत्मा कदी कषायरूप थतो नथी.
आ रीते ज्ञान अने कषायनुं भिन्नपणुं जाणवुं.
षट्खंडागम पुस्तक पांच पृ. २२३ मां कषाय अने ज्ञाननी भिन्नता बाबत
सरस वात समजावी छे.
तेमां ज्यारे ‘भावअनुगम’ मां जीवना अकषायभावनुं प्रतिपादन कर्युं त्यारे
शिष्य पूछे छे के–प्रभो! कषाय तो जीवनो गुण छे तेथी तेनो विनाश केम थाय?–जेम
ज्ञानदर्शनादि जीवगुणोनो विनाश नथी थतो; जो जीवना गुणोनो विनाश थाय तो
ज्ञानादिनी जेम जीवनो पण विनाश थई जाय! माटे जेम ज्ञानादिगुणोनो विनाश नथी
थतो तेम कषाय पण जीवगुण होवाथी तेनो विनाश न थवो जोईए.–एटले
कषायभावनां स्थानो बनी शकतां नथी!
तेना उत्तरमां आचार्यमहाराज कहे छे के–ज्ञानदर्शननो विनाश थतां जीवनो
विनाश थई जाय––ए तो बराबर छे, केमके ते तो जीवनां लक्षण छे; परंतु कषाय तो
कांई जीवनुं लक्षण नथी; कर्मजनित कषायने जीवनुं लक्षण मानवामां विरोध आवे छे.
अने, कषायोनुं कर्मजनितपणुं असिद्ध नथी केमके कषायोनी वृद्धि थतां जीवना
लक्षणभूत ज्ञाननी हानि थाय छे–ते बीजी रीते बनी शके नहीं; माटे कषाय कर्मजनित
छे (ज्ञानजनित नथी) ने ते जीवनो गुण नथी, तेथी तेनो अभाव बनी शके छे.
कषाय तो ज्ञाननो विरोधी छे; एकगुण बीजा गुणनो विरोधी (घातक) होई शके
नहि, केमके कोई गुणमां एम जोवामां आवतुं नथी. माटे ज्ञानादि जेम जीवनां
लक्षणभूत गुण छे तेम कषायो ते जीवनां गुण नथी. माटे कषायरहित एवा
अकषायभावरूप स्थानो बनी शके छे.