Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : माह : २४९८
आ न्याये ज्ञान अने कषायोनी भिन्नता ओळखतां जीवने भेदज्ञान थाय छे ने
अनुक्रमे कषायोनो अभाव थईने तेने अकषायभाव थाय छे.
ज्ञान अने कषायनी भिन्नता
• ‘जीव’ मांथी कषायो बाद करतां कांई शून्य रहेतुं नथी पण कषाय वगरनो
शुद्धज्ञानस्वरूप आखो जीव रहे छे.
• ‘जीव’ मांथी ज्ञानलक्षण बाद करतां तो जीव शून्य ज थई जाय, ज्ञान वगरनो
जीव रही शके ज नहि. माटे ज्ञानस्वरूप जीव छे, ते कषायोथी जुदो छे.
• ‘जीव’ मांथी शरीर, कर्म अने रागद्वेषादि कषायो बाद थई शके, पण जीवमांथी
ज्ञानादि बाद थई शके नहीं. तेथी कह्युं छे के ‘अबाध्य अनुभव जे लहे ते छे
जीवस्वरूप’
• शरीर कर्म अने कषायो–ए बधुंय बाद करतां पण, जीव ते बधाय वगर पोताना
ज्ञानस्वरूपे टकी रहे छे, माटे जीव ते बधाय पदार्थो करतां ऊर्ध्व छे.
• जीवमांथी रागादि बधुंय बाद करतां करतां छेवटे जीवमांथी जे बाद न थई शके
एवुं अबाध्य ज्ञानस्वरूप, ते तारुं असली स्वरूप छे; जे बाद थई शके ते तारुं
असली स्वरूप नथी.
• राग वगरनो आत्मा अनुभवी शकाय छे, माटे राग ते आत्मानुं स्वरूप नथी.
• ज्ञान वगरनो आत्मा अनुभवी शकातो नथी माटे आत्मा ज्ञानस्वरूप छे.
––आम सर्व प्रकारे भेदज्ञान करीने, रागथी भिन्न ज्ञाननो स्वाद लेवो.
अरे, जगतना जीवो पोताना चैतन्यसुखने भूलीने विषय–
कषायमां सुख मानी रह्या छे; परंतु पोतानुं जे चैतन्यसुख छे तेनी
संभाळ करवानो अवकाश लेता नथी; तेमनुं तो जीवन विषयोमां वेडफाई
जशे ने नकामुं चाल्युं जशे. विषयोथी विरक्त थईने आत्मिकसुखना
अभ्यासमां जे जीवन वीते छे ते जीवन सफळ छे.