Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९८ आत्मधर्म : २३ :
‘हुं ए क ज्ञा य क भा व छुं’
अनंतगुणना महा स्वादथी भरेला ऊंडा आत्माने अनुभवमां ल्यो.
समयसार उपर सत्तरमी वखत, ने नियमसार उपर
नवमी वखत सुंदर प्रवचनो चाली रह्यां छे. शुद्धआत्मानी
अनुभूतिना गंभीर रहस्यो गुरुदेव खोली रह्या छे. तेमांथी
छठ्ठीगाथानां प्रवचनो आपे गतांकमां वांच्या. अहीं सातमी
गाथानां प्रवचनो आप वांचशो. चैतन्यना अनंत भावोनो
रस जेमां भरेलो छे एवी आत्मअनुभूति, ज्ञानदर्शनचारित्रना
भेद–विकल्पोथी पार छे, अने अनंतगुणना एकरसरूप
महाआनंदथी भरेली छे.–‘शुद्ध आत्मानी आवी अनुभूति केम
थाय’–एवी एक ज धगशवाळा नीकटवर्ती शिष्यने
अनुभूतिनी रीत आचार्य भगवाने बतावी छे, अने शिष्य
आनंदना तरंग सहित एवी अनुभूति करी ल्ये छे.–एनुं आ
अद्भुत वर्णन मुमुक्षुओने जरूर प्रसन्नता उपजावशे.
पांचमी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के अमे आ शुद्धआत्मानुं स्वरूप देखाडीए
छीए, ते अद्धरथी नथी कहेता, पण आत्माना आनंदने घणो ज अनुभवनारा
वीतरागीगुरुओना प्रसादथी, तथा अमारा आत्माना स्वानुभवथी, अमने जे
निजवैभव प्रगट्यो छे ते समस्त निजवैभवना बळथी आ समयसारमां शुद्धआत्मानुं
स्वरूप कहीए छीए. अने हे श्रोताजनो! तमे पण तमारा आत्माना स्वानुभवथी ते
प्रमाण करजो.
––एम कहीने पछी छठ्ठीगाथामां शुद्धआत्मानुं स्वरूप बताव्युं. प्रमत्त के अप्रमत्त
एवा भेद वगरनो, शुभाशुभ कषायचक्रथी जुदो, स्पष्ट प्रकाशमान ज्योतिरूप जे
ज्ञायकभाव छे,––ते भावस्वरूपे आत्माने अनुभवतां ते शुद्धतारूपे परिणमे छे. आवा
आत्माने शुद्ध कहीए छीए.