Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : माह : २४९८
आचार्यना उपदेश वडे सावधान थईने ते मुनि विचारे के अरे! महान
अनर्थ छे के, त्रणलोकमां दुर्लभ एवुं साधुपणुं अंगीकार करीने पण हुं अत्यारे
अकाळे भोजन–पाननी ईच्छा करुं छुं! अत्यारे आ संन्यास समये तो मारे
समस्त आहार–पाणीना त्यागनो अवसर छे. समस्त संघनी साक्षीथी में चारे
प्रकारना आहारनो त्याग कर्यो छे. अनंतानंत काळमां संलेखनामरण जीव कदी
पाम्यो नथी, अत्यारे श्रीगुरुना प्रसादथी तेनी प्राप्तिनो अवसर आव्यो छे;
अहा, समस्त विषयअनुराग छोडीने परम वीतरागतानो आ अवसर छे; माटे
अत्यारे मारे परमसंयममां जागृती वडे आत्मकल्याणमां सावधान रहेवुं.––आ
प्रमाणे ते साधु जागृत थईने आराधनामां उत्साहित थाय छे.
हवे, कोई क्षपक साधु क्षुधा–तृषा–रोगादिनी तीव्र वेदनाथी असावधान के
शिथिल थई जाय, अयोग्य वचन बोले के रूदन करे–तो आचार्य स्नेहभरेलां
आनंदकारी वचनो वडे तेने सावधान करे; पोते कंटाळ्‌या वगर शिथिलता रहित
थईने क्षपकनी सावधानी माटे द्रढ उपाय करे; तेने कडवां वचन न कहे, तेनो
तिरस्कार न करे, तेने त्रास थाय के ते निरुत्साह थई जाय एवुं कांई न करे;
पण तेना परिषहनुं निवारण करवा माटे, ते जागृत थईने आराधनामां
उत्साहित थाय एवो उपाय आदरपूर्वक करे.
जेम रणक्षेत्रमां अभेद्य बख्तर पहेरीने प्रवेश करनार सुभट वेरीओना
बाण वडे हणातो नथी, तेम आराधनामां सुभट एवा जे साधु संन्यासना
अवसरमां कर्मोदय सामेना महासंग्राममां गुरुना उपदेशरूपी अभेद्य बख्तरने
धारण करे छे ते रोगादिक तीव्र पीडारूप शस्त्रवडे पण हणाता नथी.
क्षपकने आराधनामां उत्साहित करवा माटे, महा बुद्धिमानगुरु
उपदेशवचन कहे;–केवां वचन कहे? स्नेहसहित, कर्णप्रिय अने आनंदकारी वचन
कहे–जे सांभळतां ज सर्वदुःख भूलाई जाय ने हृदयमां ऊतरी जाय. वळी
ऊतावळथी न कहे पण शांति अने धैर्यथी कहे: सुंदर चारित्रधारक हे मुनि!
चारित्रमां विघ्न करनार एवा आ अल्प के महान व्याधिनी प्रबळ वेदनाने तमे
दीनतारहित थईने, अने मोहरहित थईने, धैर्यबळपूर्वक जीतो. समस्त उपसर्ग–
परिषहने मन–वचन–कायाथी जीतीने मरणसमये चारे प्रकारनी
सम्यक्आराधनाना आराधक रहो.