शुद्धात्मानी जेने गरज थई छे–धगश थई छे एवा शिष्यने समजावे छे.
थयो नथी; आवा आत्माने अनुभवतां शुद्ध आत्मानो स्वाद आवे छे. आवा आत्माने
जाण्या वगर आ संसारना आंटा मटे नहि. बापु! आ संसारना दुःखमां अवतार लेवो
ते तने कलंक लागवुं जोईए. आनंदस्वरूप आत्माने आ संसारदुःख शोभता नथी.
एनाथी छूटवा चाहतो हो तो तारा आवा शुद्धस्वरूपने तुं जाण.
अंतर्मुखज्ञान सीधुं आत्माने स्पर्शे छे, ते ज्ञानमां ईन्द्रियनी–मननी–रागनी अपेक्षा
रहेती नथी; बधाथी छूटेलुं ज्ञान, आत्माना स्वभावमां तन्मय वर्ते छे. आवा ज्ञानमां
अतीन्द्रियसुखनो स्वाद आवे छे. हुं तो देह वगरनो, राग वगरनो, शुद्ध–बुद्ध–चैतन्य–
घन छुं, मारा स्वरूपने जाणवा माटे हुं ज पोते स्वयंज्योति–प्रकाशमान छुं, कोई
बीजानी तेमां मदद नथी. स्वयं प्रकाशमान पणे मारुं स्वरूप मने प्रत्यक्ष छे.–आम जे
जाणे छे–अनुभवे छे ते जीव धर्मी छे.
आनंदनुं प्रभात खीले, वस्तु जेवी अने जेवडी छे तेनो अचिंत्यमहिमा लक्षगत थया
वगर साचुं ध्यान थाय नहि ने विकल्प छूटे नहीं. ज्ञानतत्त्व पोते विकल्प वगरनुं छे, ए
तत्त्वनो अनुभव करतां ज विकल्प वगरना चैतन्यनुं वेदन थाय छे, तेनी श्रद्धा थाय छे,
तेनुं ज्ञान थाय छे, तेनो आनंद थाय छे, एम अनंतगुणोनुं निर्दोष कार्य आत्मामां एक
साथे प्रगटे छे, तेनुं नाम धर्मदशा छे.
एकमनी सवारमां लाठीथी प्रस्थान करीने अमरेली शहेर पधार्या.)