Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
समयसारमां आत्माना समस्त निजवैभवथी आचार्यदेव शुद्ध आत्मा देखाडे छे.
शुद्धात्मानी जेने गरज थई छे–धगश थई छे एवा शिष्यने समजावे छे.
केवो छे आत्मानो शुद्धस्वभाव? ते चैतन्यभावपणे सदा प्रकाशमान
ज्ञायकभाव, शुभ–अशुभ कषायचक्ररूपे परिणमतो नथी. चैतन्यभाव छे ते कदी रागरूप
थयो नथी; आवा आत्माने अनुभवतां शुद्ध आत्मानो स्वाद आवे छे. आवा आत्माने
जाण्या वगर आ संसारना आंटा मटे नहि. बापु! आ संसारना दुःखमां अवतार लेवो
ते तने कलंक लागवुं जोईए. आनंदस्वरूप आत्माने आ संसारदुःख शोभता नथी.
एनाथी छूटवा चाहतो हो तो तारा आवा शुद्धस्वरूपने तुं जाण.
तारा ज्ञानने अंतरमां वाळतां तारो आखो आत्मा तने प्रत्यक्ष थशे, महा
आनंदसहित तारो आत्मा तने प्राप्त थशे एटले के अनुभवमां आवशे. आवुं
अंतर्मुखज्ञान सीधुं आत्माने स्पर्शे छे, ते ज्ञानमां ईन्द्रियनी–मननी–रागनी अपेक्षा
रहेती नथी; बधाथी छूटेलुं ज्ञान, आत्माना स्वभावमां तन्मय वर्ते छे. आवा ज्ञानमां
अतीन्द्रियसुखनो स्वाद आवे छे. हुं तो देह वगरनो, राग वगरनो, शुद्ध–बुद्ध–चैतन्य–
घन छुं, मारा स्वरूपने जाणवा माटे हुं ज पोते स्वयंज्योति–प्रकाशमान छुं, कोई
बीजानी तेमां मदद नथी. स्वयं प्रकाशमान पणे मारुं स्वरूप मने प्रत्यक्ष छे.–आम जे
जाणे छे–अनुभवे छे ते जीव धर्मी छे.
चैतन्यतत्त्व जेवडुं महान छे तेवडुं जेना लक्षमां आवे तेने ज विकल्प तूटे, एटले
के विकल्प अने ज्ञाननी भिन्नता थईने तेने अतीन्द्रिय ज्ञान प्रकाशमां किरणो फूटे ने
आनंदनुं प्रभात खीले, वस्तु जेवी अने जेवडी छे तेनो अचिंत्यमहिमा लक्षगत थया
वगर साचुं ध्यान थाय नहि ने विकल्प छूटे नहीं. ज्ञानतत्त्व पोते विकल्प वगरनुं छे, ए
तत्त्वनो अनुभव करतां ज विकल्प वगरना चैतन्यनुं वेदन थाय छे, तेनी श्रद्धा थाय छे,
तेनुं ज्ञान थाय छे, तेनो आनंद थाय छे, एम अनंतगुणोनुं निर्दोष कार्य आत्मामां एक
साथे प्रगटे छे, तेनुं नाम धर्मदशा छे.
– : ईति श्री लाठीशहेर – प्रवचन: –
(लाठीशहेरमां त्रणदिवस रह्या; रात्रिचर्चामां गुरुदेव धर्मात्माना महिमानी ने
विदेहधामनी अवनवी चर्चा सांभळावीने मुमुक्षुओने प्रसन्न करता हता. फागण सुद
एकमनी सवारमां लाठीथी प्रस्थान करीने अमरेली शहेर पधार्या.)