प्रश्न:–द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदना विचारमां पण मिथ्यात्व छे, ते कई रीते?
उत्तर:–भेदना विचार ते कांई मिथ्यात्व नथी; एवा भेदविचार तो सम्यग्द्रष्टिनेय
होय; पण ते भेदविचारमां जे रागरूप विकल्प छे ते विकल्पने लाभनुं कारण
मानीने तेमां जे जीव एकत्वबुद्धि करीने अटके छे तेने मिथ्यात्व छे–एम जाणवुं.
एकत्वबुद्धि वगर भेदविकल्प ते मिथ्यात्व नथी, ते अस्थिरतानो राग छे.
प्रश्न:–गुणभेदना विचारथी पण मिथ्यात्व न टळे, तो मिथ्यात्वने टाळवुं केम?
उत्तर:–जे शुद्धवस्तुमां राग के मिथ्यात्व छे ज नहि–ए शुद्धवस्तुमां परिणाम
तन्मय थतां मिथ्यात्व टळे छे. बीजा कोई उपायथी मिथ्यात्व टळे नहि.
गुणभेदनो विकल्प पण शुद्धवस्तुमां क्यां छे!–नथी; तो ते शुद्धवस्तुनी प्रतीत
गुणभेदना विकल्पनी अपेक्षा राखती नथी. शुद्धवस्तुमां विकल्प नथी, ने
विकल्पमां वस्तु नथी. बंनेनी भिन्नता जाणतां परिणति विकल्पथी खसीने
(छूटी पडीने) स्वभावमां आवी त्यां सम्यक्त्व थयुं ने मिथ्यात्व टळ्युं.––आ
मिथ्यात्व टाळवानी रीत छे. ते माटे, विकल्प करतां चिदानंदस्वभावनो अनंतो
महिमा भासीने तेनो अनंतो रस आववो जोईए.–एम करवाथी परिणाम
तेमां तन्मय थाय छे.
प्रश्न:–एक समयनी पर्यायनो बीजा समये व्यय थाय छे, –व्यय एटले शुं?
उत्तर:–पर्यायनो स्वभाव एवो छे के तेनुं अस्तित्व एक समय ज रहे, पछीना
समये ते न रहे; एनुं नाम ‘व्यय’ छे. द्रव्य त्रिकाळ छे, पर्याय एकसमयपूरती
छे; एटले द्रव्यथी जोतां वस्तु नित्य देखाय छे ने पर्यायथी जोतां वस्तु अनित्य
देखाय छे;–आम वस्तु अनेकान्तस्वरूप छे.
प्रश्न:–नवतत्त्वने जाणवा ते सम्यग्दर्शन छे, के शुद्धजीवने जाणवो ते सम्यग्दर्शन छे?