Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 22 of 43

background image
: फागण : २४९८ आत्मधर्म : १९ :
उत्तर:–नव तत्त्वोने यथार्थपणे जाणतां तेमां शुद्धजीवनुं ज्ञान पण भेगुं आवी ज
जाय छे; ने शुद्धजीवने जाणे तो तेने नव तत्त्वनुं पण यथार्थज्ञान जरूर होय छे.–
आ रीते नवतत्त्वनुं ज्ञान ते सम्यग्दर्शन कहो, के शुद्धजीवनुं ज्ञान ते सम्यक्त्व
कहो; ते बंने एक ज छे. (ज्ञान कहेतां ते ज्ञानपूर्वकनी प्रतीत, तेने सम्यग्दर्शन
समजवुं.)
–आमां एक विशेषता ए के, सम्यक्त्व प्रगटवानी अनुभूतिना काळे नव तत्त्वो
उपर लक्ष नथी होतुं, त्यां तो शुद्धजीव उपर ज मीट होय छे. ने ‘आ हुं’ एवी
जे निर्विकल्पप्रतीति छे तेना ध्येयभूत एकलो शुद्ध आत्मा ज छे.
प्रश्न:– निर्विकल्प अनुभूतिमां मननो संबंध छूटी गयो छे–ए वात केटला टका
साची?
उत्तर:–सो ए सो टका साची; जे निर्विकल्पतारूप परिणमन छे तेमां तो मननुं
अवलंबन जरापण नथी, तेमां तो मननो संबंध तद्न छूटी गयो छे. ते वखते
अबुद्धिपूर्वक जे रागादि परिणमन होय तेमां मननो संबंध छे.
प्रश्न:–जीव क्या वेदथी मोक्ष पामे?
उत्तर:–पुरुषवेद, स्त्रीवेद के नपुंसकवेद–ए त्रणेय वेदनो अभाव करे. त्यारे जीव
मोक्ष पामे; कोईपण वेद होय त्यां सुधी जीव मोक्ष न पामे. आ भाववेदनी
अपेक्षाए समजवुं.
अने, मोक्षगामी जीवने अंतिम भवे द्रव्यवेदमां पुरुषवेद ज होय छे; परंतु
तेनोय ज्यारे अभाव थाय छे त्यारे मोक्ष थाय छे, केमके शरीरने साथे राखीने
मोक्ष थाय नहि.
आ रीते, कोई पण वेदथी मोक्ष थतो नथी. ज्यां सुधी वेद छे त्यां सुधी मोक्ष
नथी. मोक्ष पामनारो जीव समस्त वेदथी रहित, अवेदी होय छे. एटले ‘मोक्ष’
तत्त्व शोधवुं होय तो अवेदमार्गणामां शोधी शकाय. वेदमां ते मळे नहि.
मार्गणा एटले शुं?
मार्गणा एटले जीवने शोधवानां प्रकारो; ज्यां ज्यां जीव मळे तेवा स्थानोने
मार्गणास्थान कहेवाय छे.