जाय छे; ने शुद्धजीवने जाणे तो तेने नव तत्त्वनुं पण यथार्थज्ञान जरूर होय छे.–
आ रीते नवतत्त्वनुं ज्ञान ते सम्यग्दर्शन कहो, के शुद्धजीवनुं ज्ञान ते सम्यक्त्व
कहो; ते बंने एक ज छे. (ज्ञान कहेतां ते ज्ञानपूर्वकनी प्रतीत, तेने सम्यग्दर्शन
समजवुं.)
उपर लक्ष नथी होतुं, त्यां तो शुद्धजीव उपर ज मीट होय छे. ने ‘आ हुं’ एवी
जे निर्विकल्पप्रतीति छे तेना ध्येयभूत एकलो शुद्ध आत्मा ज छे.
साची?
अवलंबन जरापण नथी, तेमां तो मननो संबंध तद्न छूटी गयो छे. ते वखते
अबुद्धिपूर्वक जे रागादि परिणमन होय तेमां मननो संबंध छे.
मोक्ष पामे; कोईपण वेद होय त्यां सुधी जीव मोक्ष न पामे. आ भाववेदनी
अपेक्षाए समजवुं.
तेनोय ज्यारे अभाव थाय छे त्यारे मोक्ष थाय छे, केमके शरीरने साथे राखीने
मोक्ष थाय नहि.
नथी. मोक्ष पामनारो जीव समस्त वेदथी रहित, अवेदी होय छे. एटले ‘मोक्ष’
तत्त्व शोधवुं होय तो अवेदमार्गणामां शोधी शकाय. वेदमां ते मळे नहि.
मार्गणास्थान कहेवाय छे.