Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : फागण : २४९८
मार्गणास्थान केटलां छे?
मार्गणास्थानो मुख्यपणे १४ छे.––(ते दरेक मार्गणा, तथा तेना पेटा भेद नीचे
कौंसमां बताव्या छे–
१ गति ४+१ (चारगति, तथा एक सिद्धगति)
२ ईन्द्रिय प+१ (एकेन्द्रिथी पंचेन्द्रिय; तथा अतीन्द्रिय)
३ काय ६+१ (पृथ्वीकायादि पांच स्थावर तथा त्रस ए छकाय, तथा एक अकाय)
४ जोग १५+१ (४ मनना, ४ वचनना, ७ कायाना, कुल १प योग, अने एक अयोग)
प वेद ३+१ (स्त्री–पुरुष–नपुंसक त्रण वेद, तथा एक अवेद)
६ कषाय ४+१ क्रोधादि ४ कषाय, तथा एक अकषाय)
७ ज्ञान ८ (मति आदि पांच सम्यग्ज्ञान, त्रण अज्ञान)
८ संयम ७+१ (१ असंयम, १ संयमासंयम, प संयम कुल ७; तथा १ संयम–
असंयम बंनेथी पार)
९ दर्शन ४ (चक्षु–अचक्षु आदि)
१० लेश्या ६+१ (कृष्ण–नील–कापोत, प्रीत–पद्म–शुक्ल छ लेश्या; १ अवलेश्या)
११ भव्यत्व २+१ (भव्य तथा अभव्य; तथा ते बंनेथी पार)
१२ सम्यक्त्व ६ (त्रण सम्यक्त्व; मिश्र, सासादन तथा मिथ्यात्व)
१३ संज्ञिप्त २+१ (संज्ञी, असंज्ञी; संज्ञा–असंज्ञा बंनेथी पार)
१४ आहार २ (आहारक, अनाहारक)
उपर मुजब १४ मार्गणा छे. कई कई मार्गणामां क्याक्या
गुणस्थानवाळा जीवो होय? तेनी संख्या केटली? तेनुं क्षेत्र केटलुं? तेनो काळ
केटलो? अने तेना भावो क्या? वगेरेनुं विस्तारपूर्वक वर्णन ‘षटखंडागम’
वगेरे सिद्धांतग्रंथोमां छे.
प्रश्न:–१४ मार्गणाओमांथी कई कई मार्गणाओ ‘निरंतर’ छे? अने कई
मार्गणाओ ‘सांतर’ छे?
उत्तर:–प्रथम निरंतर अने सांतरनी व्याख्या: जे गति वगेरे मार्गणामां कोईने कोई
जीव सदाय विद्यमान होय, जीव वगरनी खाली न होय, ते मार्गणाने ‘निरंतर’