मार्गणास्थानो मुख्यपणे १४ छे.––(ते दरेक मार्गणा, तथा तेना पेटा भेद नीचे
१ गति ४+१ (चारगति, तथा एक सिद्धगति)
२ ईन्द्रिय प+१ (एकेन्द्रिथी पंचेन्द्रिय; तथा अतीन्द्रिय)
३ काय ६+१ (पृथ्वीकायादि पांच स्थावर तथा त्रस ए छकाय, तथा एक अकाय)
४ जोग १५+१ (४ मनना, ४ वचनना, ७ कायाना, कुल १प योग, अने एक अयोग)
प वेद ३+१ (स्त्री–पुरुष–नपुंसक त्रण वेद, तथा एक अवेद)
६ कषाय ४+१ क्रोधादि ४ कषाय, तथा एक अकषाय)
७ ज्ञान ८ (मति आदि पांच सम्यग्ज्ञान, त्रण अज्ञान)
८ संयम ७+१ (१ असंयम, १ संयमासंयम, प संयम कुल ७; तथा १ संयम–
१० लेश्या ६+१ (कृष्ण–नील–कापोत, प्रीत–पद्म–शुक्ल छ लेश्या; १ अवलेश्या)
११ भव्यत्व २+१ (भव्य तथा अभव्य; तथा ते बंनेथी पार)
१२ सम्यक्त्व ६ (त्रण सम्यक्त्व; मिश्र, सासादन तथा मिथ्यात्व)
१३ संज्ञिप्त २+१ (संज्ञी, असंज्ञी; संज्ञा–असंज्ञा बंनेथी पार)
१४ आहार २ (आहारक, अनाहारक)
प्रश्न:–१४ मार्गणाओमांथी कई कई मार्गणाओ ‘निरंतर’ छे? अने कई
उत्तर:–प्रथम निरंतर अने सांतरनी व्याख्या: जे गति वगेरे मार्गणामां कोईने कोई