Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
मार्गणास्थानोनी जेम गुणस्थानोमां पण निरंतर अने सांतरना भाग
आ प्रमाणे छे––१, ४, प, ६, ७, १३, १४ आ सात गुणस्थानो तो निरंतर छे,
ते गुणस्थानवाळा कोई ने कोई जीव जगतमां सदाय होय ज छे, तेनो कदी
विरह नथी; अने बाकीनां २, ३, ८, ९, १०, ११, १२ ए सात गुणस्थानो
सांतर छे.
प्रश्न:–भेदज्ञाननी रीत अटपटी अघरी लागे छे तो शुं करवुं?
उत्तर:–वारंवार द्रढपणे अतिशय प्रेमथी तेनो अभ्यास करतां ते जरूर सुगम
थई जाय छे. भेदविज्ञान करीकरीने अनंता जीवो मुक्ति पाम्या, ते जीवो
आपणा जेवा ज हता, तो तेमणे जे कर्युं ते आपणाथी पण थई शके तेवुं छे.
खरी धगशथी तेनो अभ्यास करवो जोईए. अटपटुं तो छे पण अशक्य नथी,
एटले तेना खरा प्रयत्नथी ते जरूर थई शके तेवुं छे. साची समजणथी मार्ग
सरळ थई जाय छे.
राग अने ज्ञान वच्चे सूक्ष्म सांध छे, तेओ कांई सांध वगरना एकमेक
थई गया नथी, माटे प्रज्ञाछीणीना वारंवार अभ्यासवडे तेमने भिन्न पाडीने
शुद्धज्ञानने अनुभवी शकाय छे. माटे निरंतर भेदज्ञाननो अभ्यास करवो.
प्रश्न:–जातिस्मरणज्ञान क्यारे थाय?
उत्तर:–ए ज्ञान जेने पूर्वभवना ते प्रकारना संस्कार होय तेने थाय छे. पण
मुमुक्षुने मुख्यता आत्मज्ञाननी छे, जातिस्मरणनी मुख्यता नथी. मोक्षनुं कारण
आत्मज्ञान छे, जातिस्मरणज्ञान मोक्षनुं कारण नथी. धर्मसंबंधी
जातिस्मरणज्ञान होय तो ते वैराग्यनुं के सम्यक्त्वादिनुं निमित्त थाय छे. पण
भावना अने प्रयत्न आत्मज्ञाननो होय, जातिस्मरणनो नहीं.
जातिस्मरण तो भवने जाणे छे; एकलुं जातिस्मरणज्ञान मोक्षनुं कारण
थतुं नथी. स्वानुभव ज्ञान वडे आत्मानी स्वजातने जाणवी ते परमार्थ
जातिस्मरण छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
प्रश्न:–दर्शनमोहनी एक प्रकृतिनुं नाम ‘सम्यक्त्वप्रकृति’ केम छे?
उत्तर:–केमके तेना उदयनी साथे ‘सम्यक्त्व’ पण होय छे, एटले सम्यक्त्वनी
सहचारिणी होवाथी तेनुं नाम ‘सम्यक्त्वप्रकृति’ पड्युं. क्षायोपशमिक
सम्यक्त्वनी साथे तेनो उदय होय छे.