: फागण : २४९८ आत्मधर्म : २३ :
प्रश्न:–धर्मनो मर्म शुं छे?
उत्तर:–आत्मा पोताना स्वभावसामर्थ्यथी पूरो छे ने परथी अत्यंत जुदो छे––
एम स्व–परनी भिन्नता जाणीने, स्वद्रव्यना अनुभवथी आत्मा शुद्धताने पामे
ते धर्मनो मर्म छे.
प्रश्न:–केवळज्ञानीना शरीरमां निगोदजीवो होय?
उत्तर:–ना; केवळीनुं शरीर परम औदारिक छे, तेना आश्रये निगोदना जीवो न
होय. परम औदारिक शरीर, आहारक शरीर, देव तथा नारकीनां वैक्रियिकि
शरीर, पृथ्वी–अप्–तेज–वायुकाय, ए आठ स्थानोनां आश्रये निगोदजीवो नथी.
(सूक्ष्मनिगोद तो जगतमां सर्वत्र छे, ते कोईना आश्रये नथी. बादरनिगोदजीवो
उपरोक्त स्थानना आश्रये होतां नथी; ते क्षेत्रे भले हो.)
प्रश्न:–जीव अत्यारे जे पुण्य–पाप करे छे तेनुं फळ क्यारे मळे?
उत्तर:–करेला पुण्य–पापनुं फळ कोई जीवने आ भवमां ज पण मळे छे ने कोईने
पछीना भवमां मळे छे.
कोईने पुण्यभावना बळे के पवित्रताना बळे पूर्वनां पाप पलटीने
पुण्यरूप पण थई जाय छे; ए ज रीते तीव्रपापथी कोईने पूर्वनां पुण्य–पलटीने
पापरूप पण थई जाय छे.
पुण्य–पापनां परिणामनो (कलुषता–अशांतिनो) भोगवटो तो ते
परिणाम वखते ज जीवने थतो होय छे, तेनी आकुळताने ते वखते ज ते वेदे छे.
कोई जीव शुद्धताना बळे, पूर्वे बांधेला पापकर्मने फळ आव्या पहेलांं ज
छेदी नांखे छे.
प्रश्न:–एक छूटो परमाणु आंखथी के बीजा कोई (दूरबीन वगेरे) साधनथी जोई
शकाय खरो?
उत्तर:–ना; मूर्त होवा छतां पांचईन्द्रिय संबंधी ज्ञाननो ते विषय नथी;
अवधिज्ञान वडे परमाणुने जाणी शकाय. पण बहारनां कोई साधनथी
अवधिज्ञान थतुं नथी. अवधिज्ञान आंखवडे पण जणातुं नथी.
परमाणुने जाणे एवुं सूक्ष्म अवधिज्ञान ज्ञानीने ज थाय छे, अज्ञानीने
तेवुं अवधिज्ञान थतुं नथी. एटले, एकत्वरूप परम–आत्माने जे जाणे ते ज एक
परमाणुने जाणी शके.