: २४ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
अवधिज्ञान सिवाय जिनागम द्वारा परमाणुना यथार्थस्वरूपनो निर्णय
थई शके छे, –ते परोक्षज्ञान छे.
प्रश्न–
पड्यो हतो भ्रांतिमां के आत्मा परथी अभिन्न छे;
जाग्यो हवे जाणी लीधुं के आत्मा सर्वथी भिन्न छे.
–आटलुं जाण्युं, पण हवे पछी शुं?
उत्तर:–जाण्युं ज नथी. खरेखर जेणे आटलुं जाण्युं तेने ‘हवे पछी शुं’ एवो प्रश्न
रहे नहि. स्व–परनी भिन्नता जेणे यथार्थ जाणी तेनी परिणति स्व तरफ वळे,
अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे, ने हवे सादिअनंत आ ज करवानुं छे–एम
निःसंदेहता थाय. आम थाय त्यारे ज स्व–परने खरेखर जुदा जाण्या कहेवाय.
परिणति परमां ज रह्या करे ने स्वमां झुके नहि तो तेणे परथी भिन्न जाणी केम
कहेवाय?
प्रश्न:–क्रोधादि विभावपर्यायमां तो बीजुं निमित्त होय, पण शुद्धपर्यायमांये
निमित्त होय?
उत्तर:–हा; शुद्धभावमांय कोईने कोई निमित्त होय छे, कां देव–गुरु निमित्त, कां
काळ निमित्त, कां देहादि योग्य निमित्त होय छे. जो के कार्य तो निमित्तथी
निरपेक्षपणे, स्वयं पोताथी थाय छे, पण निमित्तनुं निमित्त तरीके अस्तित्व
होय छे.
विभावपर्यायमां जेम कर्मनुं निमित्त छे तेम शुद्धपर्यायमां कर्म निमित्त नथी;
तेमज ते पर्यायमां परनो आश्रय नथी तेथी तेने निरपेक्ष कहेवाय छे. पण तेथी
कांई पर चीज तेमां निमित्त पण न होय–एम नथी. सिद्धभगवाननेय केवळज्ञानमां
लोकालोक निमित्त छे. पर चीज निमित्त होय ते कांई दोषनुं कारण नथी.
प्रश्न:–एक साथे वधुमां वधु केटला जीवो केवळज्ञान पामे?
उत्तर:–एकसो ने आठ.
प्रश्न:–कोईने सीधुं क्षायिक सम्यक्त्व थाय?
उत्तर:–ना; क्षायोपशमिक पूर्वक ज क्षायिक सम्यक्त्व थाय. अनादिना जीवने पहेलांं
औपशमिक सम्यक्त्व थाय, ने पछी क्षायोपशमिक पूर्वक ज क्षायिक थाय–ए नियम
छे. एटले, दरेक मोक्षगामी जीव त्रणे प्रकारना सम्यक्त्वनो जरूर पामे ज.