Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९८ आत्मधर्म : २५ :
प्रश्न:–एक तीर्थंकरने एकथी वधु गणधरो होय?
उत्तर:–हा; आ चोवीसीमां सौथी वधु (११०) गणधरो पद्मप्रभुने, अने सौथी
ओछा (१०) गणधरो पार्श्वनाथप्रभुने हता. बधाय गणधरो नियमथी ते भवे
मोक्ष पामे छे.
प्रश्न:–‘जिनपद निजपद एकता’ एटले शुं?
उत्तर:–जेवुं जिनपद ते ज निजपद–एम कहीने आत्मानो परमार्थस्वभाव
बताव्यो छे. जिन जेवा निजस्वभावने जाणे ते जिन थाय. जीव सम्यग्द्रष्टि थयो
(अथवा सम्यग्दर्शन थवा माटेना त्रण करणमां प्रवेश्यो) त्यां तेने ‘जिन’ कह्यो
छे. प्रवचनसारमां, अरिहंतने ओळखतां आत्मा ओळखाय छे–एम कह्युं छे, ते
पण जिनपद अने निजपदनी समानता सूचवे छे.
प्रश्न:–आत्माने ‘परमात्मा’ केम कह्यो?
उत्तर:–सर्वज्ञतारूप परम उत्कृष्ट तेनो स्वभाव छे तेथी ते परम आत्मा छे.
प्रश्न:–परमात्मा होवा छतां ते संसारमां केम भटके छे?
उत्तर:–पोताना परमात्मस्वभावने भूल्यो छे माटे.
प्रश्न:–परमब्रह्मना जिज्ञासुने अर्थात् मोक्षना अभिलाषीने कांई कार्य करवानुं
रहे छे?
उत्तर:–हा; एने ज खरूं कार्य करवानुं छे. पोताना स्वभावनुं सम्यक्भान अने
तेमां लीनता, अर्थात् सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप महान कार्य ए दरेक
जिज्ञासुनुं कर्तव्य छे. अने आवा पोताना ज्ञानभावमय कार्य सिवाय अन्य
समस्त कार्योमां तेने अकर्तापणुं छे. आ परम ब्रह्मनी एटले के केवळज्ञाननी
प्राप्तिनो उपाय छे.
प्रश्न:–जो ईश्वर आ जीवने कांई नथी करता, तेमज एकद्रव्य बीजा द्रव्यने कांई
नथी करतुं, तो जीवने मोक्ष, स्वर्ग, नरक वगेरे कोण करे छे?
उत्तर:–जीव पोते पोताना ते–ते प्रकारना भावथी मोक्षादिकरूप थाय छे; पोते ज
पोतानी तेवी पर्यायोने करे छे, बीजा कोई कर्ता नथी.
प्रश्न:–अमेरिकाथी एक जिज्ञासु भाई पूछावे छे के–
Soul transpermation
from one body to another is possible or not ? if not, why ?