Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
एक शरीरमांथी बीजा शरीरमां जीव जई शके के नहि?–जो नहि, तो शा माटे?
उत्तर:– जीव ज्यारे कोई एक शरीरने छोडीने बीजा शरीरमां अवतरे छे त्यारे
ते शरीरना संबंधमां रहेवानी अमुक चोक्कस मुदत (आयुष) होय छे, त्यां
सुधी ते शरीर साथे रहे छे; ते शरीरमांथी सर्वथा बहार नीकळीने बीजे जई
शकतो नथी; पण विक्रियाना बळे बीजा नवा शरीरो रचीने ते (मूळ शरीर
उपरांत) नवा शरीरमां पण जीव प्रवेश पामी शके छे. आयुष्य पूरुं थतां एक
शरीरने तद्न छोडीने जीव बीजा शरीरमां प्रवेश करे छे.
अने, जो देहथी देहथी भिन्न आत्मानी अत्यंत भिन्नता जाणीने मोक्षने
साधे तो जीव देहथी तद्न जुदो पडी जाय छे, ने सदाकाळ देह वगरनो रहे छे–
छतां परम सुखी रहे छे. देह वगर ज आत्माना परम सुखनी सिद्धि ए
भारतनी अजोड अध्यात्मविद्या छे, जे अमेरिकामां नथी. (अमारा अमेरिका
वगेरेना जिज्ञासु बंधुओ तेमज कोलेजना विद्यार्थीओ अध्यात्मविद्याना संस्कार
मेळवे ते माटे जैनबाळपोथीनुं इंग्लीश भाषांतर भाईश्री सुमनभाई आर.
दोशी द्वारा तैयार थई रह्युं छे–जे थोडा वखतमां प्रसिद्ध थशे. जैनसाहित्यमां आ
बाळपोथीनी पांच भाषामां एक लाख उपरांत नकल प्रसिद्ध थई चूकी छे ए
जैनसाहित्य माटेनुं एक गौरव छे. आफ्रिकाथी पण इंग्लीश जैनबाळपोथीनी
एक हजार नकलनो ओर्डर घणा वखतथी आवेल छे.)
प्रश्न:–शरीर जड छे, रूपी छे; आत्मा चेतन छे, अरूपी छे; ईत्यादि वस्तुस्वरूपना
विचारो करवा छतां शरीर साथेनी एकत्वबुद्धि टळती नथी, तो ते टाळवानो
खरो उपाय शुं करीए?
उत्तर:–बंनेनुं खरेखरुं वस्तुस्वरूप जाणे तो भेदज्ञान थाय ने एकत्वबुद्धि अवश्य
टळे. परंतु ज्ञानमां जीव अने शरीरनी भिन्नतानुं यथार्थ वस्तुस्वरूप जाण्या
विना मात्र विचार करे तेथी कांई एकत्वबुद्धि छूटे नहि. ज्ञानमां वस्तुस्वरूपने
बराबर जाणे तो मिथ्याबुद्धि छूटी ज जाय. माटे विचारदशाने सूक्ष्म बनावीने,
सूक्ष्म भूल क््यां रही जाय छे ते पकडवी जोईए. अने खरा स्वरूपनो स्पष्ट
निर्णय करवो जोईए. स्पष्ट ज्ञानवडे पर साथेनी एकत्वबुद्धि जरूर टळे छे. जो
न टळे तो विचारदशामां क््यांक ऊंडी–ऊंडी भूल छे एम समजवुं ने गुरुगमे
साचो निर्णय करवो.
[जयजिनेन्द्र]