श्रीगुरु तने स्वघरमां वास्तु करावे छे के हे जीव! तुं तारा आत्माने चैतन्यस्वरूप
जाणीने तेनी सेवा कर. तेनाथी ज तारुं कल्याण थशे.
खेतरमां रखडीने ज्यारे घरे गमाणमां आवे छे त्यारे होंशथी दोडता–दोडता आवे छे.
बळद ज्यारे खेतरमां मजुरी माटे जता होय त्यारे हळवे हळवे जाय पण मजुरीथी
छूटीने आखी रात आराम करवा ने घास खावा घरे पाछा फरता होय त्यारे तो दोडता–
दोडता आवे छे. अरे! बळद जेवा पशुनेय छूटकाराना पंथनो आवो उल्लास आवे छे.
तो हे जीव! तने वीतरागी संतो तारा छूटकारानो मार्ग बतावे छे. अनादिथी संसारमां
रखडीरखडीने जीव थाक््यो, हवे श्रीगुरु तेने शांतिनुं धाम एवुं स्वघर बतावे छे; ते
स्वघरमां रहीने सादिअनंतकाळ आनंदनो भोगवटो करवानो छे; तो स्वघरमां
आववानो उमंग कोने न आवे? तुं तारा आत्मानो परम उल्लास लावीने तारा
स्वतत्त्वमां आव. अनादिनां दुःखोथी छूटकारानो आवो मजानो मार्ग! ते सांभळतां
मुमुक्षु जीव परम उल्लासथी आत्माने साधे छे. एनुं नाम ज्ञाननी सेवा छे, ए ज
मोक्षमार्ग छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप आत्मा छे. आत्मानुं आवुं स्वरूप वीतरागमार्गमां ज छे.
मोक्षनी भीख मांगे–ए तने शोभतुं नथी. चैतन्यराजा रागनी सेवा करे–ए कांई तेने
शोभे? ना; ए तो मोहभजन छे. चैतन्यराजानी सेवा तो राग वगरनी छे. ज्ञानवडे
चैतन्यराजानी सेवा करतां ते पोताने महान आनंद आपे छे, शांतिना सुखना अपार
निधान आपे एवो आ चैतन्यराजा छे. तेना ज्ञान–श्रद्धा–एकाग्रतावडे अपूर्व मोक्षमार्ग
प्रगट थाय छे. माटे हे मोक्षार्थी जीवो? तमे सतत आवा ज्ञानस्वरूपे पोताने
अनुभवो...आनंदधाम तमे पोते छो तेने ओळखीने तेमां वसो...ए मंगल वास्तु छे.