करीने देख तो तने तारुं चेतनपणुं देखाशे, ने जड–पुद्गलथी अत्यंत जुदाई अनुभवमां
आवशे.
पुद्गलरूप केम थाय? राग पण चेतनता वगरनो छे. चेतनतत्त्व कदी चेतनता छोडीने
रागमय के देहमय थतुं नथी; ने देह के राग कदी चेतनरूप थता नथी. बंनेने तद्न
भिन्नता छे. जेम प्रवाहीपणुं ने खारापणुं तो पाणीमां एकसाथे रही शके छे, तेमां
विरोध नथी; तेम जीवमां कांई चेतनता अने अचेतनताने अविरोधपणुं नथी; जीवमां
जेम चेतनपणुं तो तन्मयपणे सदा रहेलुं छे, तेम कांई रागादिपणुं जीवसाथे तन्मय
वर्ततुं नथी, ते तो जुदुं वर्ते छे. सर्वज्ञदेवे कहेलुं आवुं भेदज्ञान करीने हे जीव! तुं खुशी
था...प्रसन्न था...आनंदित था.
था! ज्यां आनंदमय तत्त्व पोते पोताने अनुभवमां आव्युं त्यां हवे संदेह केवो? खेद
केवो? –संदेह अने खेद छोडीने आवा स्वतत्त्वने आनंदथी अनुभवमां ले.
अनादिकाळथी भूलीने भवमां भटक्यो, छतां मारुं तत्त्व बगडी गयुं नथी, चेतनपणाने
छोडीने जडरूप–रागरूप थयो नथी; चारे बाजुथी, बधा परभावोथी मारुं