
चैतन्यविलासस्वरूप आत्माने जाणीने तेनी भावनामां एकाग्र थतां समस्त परभावोनुं
प्रतिक्रमण थई जाय छे. आवा आत्मानी भावना वगर परभावोनुं साचुं प्रतिक्रमण
थाय नहीं. माटे शरूआतमां ज आत्माना परम स्वभावमां सर्वे परभावोना कर्तृत्वनो
अभाव बतावे छे. हुं सहज चैतन्यविलासरूप छुं, नारकादि विभावपर्यायो मारामां
नथी, तेनो हुं कर्ता नथी.
परभावोनुं कर्तृत्व मारा परम स्वभावमां नथी. अहा, एककोर एकलो परमस्वभाव,
बीजी कोर समस्त परभावो; ज्यां सहज परमस्वभावनी सन्मुख थईने तेनी भावना
करी त्यां समस्त परभावनो तेमां अभाव छे.–आवुं सहज चैतन्यतत्त्व हुं छुं–एम
धर्मीजीव पोताना शुद्धतत्त्वने भावे छे.–आवी भावना ते मोक्षनुं कारण छे.
हुं तो सहज चैतन्य परमभाव छुं्र चैतन्यना परमभावनी अनुभूतिमां कोई परभाव छे
ज नहीं, माटे मने ते कोई भावोनुं कर्तृत्व नथी, तेनो करावनार के अनुमोदन पण हुं
नथी–आवो अनुभव करनार धर्मीने साचुं प्रतिक्रमण छे परभावोमां ऊभो रहीने तेनुं
प्रतिक्रमण केम थाय? स्वभावमां जे आव्यो ते परभावथी पाछो फर्यो. धर्मीं,
नरकगतिमां रहेलो होय ते पण, पोताना आत्माने नरकादि वगरनो शुद्ध स्वभावरूपे
स्वीकारे छे; तेनी श्रद्धामां एम नथी के हुं नारकी छुं; ते तो पोताने सहज चैतन्यस्वरूपे
ज स्वीकारे छे; ने ते चैतन्यभावमां नारकादि भावनो