Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 45

background image
: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : ९ :
अभाव छे. धर्मी शुद्धचेतनभाव नरकादि चारगतिने बांधे पण नहि ने तेने
भोगवे पण नहि. चारगतिना कारणरूप शुभाशुभभावो ज चेतनामां क्यां छे?
सम्यग्द्रष्टिने अभेद आत्मानी जे अनुभूति छे तेमां चारगति के तेना कारणरूप
भावो तो नथी, तेमज ज्ञानमार्गणाना भेदो वगेरे भेदो पण ते अनुभूतिमां नथी; ते
अनुभूतिमां तो एक सहज चैतन्यविलासरूप आत्मा ज प्रकाशे छे. धर्मीने भेदना
विकल्पोनुं ग्रहण नथी, तेणे तो पोताना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूपमां ज चित्तने
एकाग्र कर्युं छे; एटले शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय सिवायना समस्त परभावोनो परिग्रह
तेने नथी. आ रीते निजभावोथी भिन्न सकल अन्यभावोने छोडीने ते अल्पकाळमां
मुक्ति पामे छे.
धर्मीनो ध्येय केवो आत्मा छे तेनुं आ वर्णन छे, आवा आत्माने जाणीने तेना
अनुभवमां चित्तने जोडयुं त्यां सर्वे परभावोथी प्रतिक्रमण थई गयुं. आवा आत्माना
ग्रहण वगर परभावनो त्याग थाय नहीं. ईन्द्रियो मारामां छे ज नहि–त्यां ईन्द्रियोनुं
आलंबन केवुं? ईन्द्रियातीत ज्ञानवडे जे जाणवामां आवे एवो हुं छुं. आवा आत्मामां
उपयोग जोडतां ज्ञानमां भेद–विकल्प रहेता नथी, अभेद अनुभूति जामे छे आवी
अनुभूति जामी त्यां अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन छे. आत्मा पोते पोतामां जामी
गयो....लीन थयो, त्यां कोई परभाव तेमां न रह्या. आवी परिणतिरूपे आत्मा परिणमे
तेने परमार्थ प्रतिक्रमण कहेवाय छे.
परिणति पोताना अकषायस्वभावमां अभेद थईने परिणमि त्यां तेमां कषाय
केवो? ने दुःख केवुं? एमां जन्म–मरण केवा? ने शरीर केवुं? द्रव्यमां कषाय नथी–एवुं
स्वीकारनारी द्रष्टिमां पण कषाय नथी; एटले द्रव्य ने पर्याय बंने शुद्ध छे.–आवा
स्वतत्त्वने धर्मी अनुभवे छे; पछी पर्यायमां कांईक रागादिभावो रहे तेने तो खरेखर
परज्ञेयपणे जाणे छे. अहा! आवो मारो भगवान आत्मा! ते हवे मारा अनुभवमां
आव्यो; हवे कोई परभाव मने मारा स्वरूपे भासता नथी. हुं तो एक परमस्वभाव ज
छुं. भेदनो विषय हुं नहीं, द्रव्य–गुण–पर्यायनाय भेद वगर एक अभेद परमभावरूपे
अनुभवमां आव्यो ते हुं छुं–सम्यग्दर्शन थयुं तेमां आवो आत्मा साक्षात् थयो छे, स्पष्ट
निःशंक अनुभवमां आव्यो छे.
भाई, संतो जे स्वरूप बतावे छे, ते तुं छो. तारुं स्वरूप पोते आवुं मोटुं छे–ते
ज संतो कहे छे. आवुं स्वरूप समजीने अनुभवमां लेवुं ते ज मोक्षनो