
प्रतापवंत छुं. मारा स्वरूपना महान आनंद पासे जगतनी बीजी कोई चीज मने
महिमावंत लागती नथी.
अनुभवे छे, तेमां अपार धीरज छे, परम गंभीरता छे; चैतन्यनो महान प्रताप तेमां
प्रगटे छे. धर्मी निःशंक कहे छे के आवो महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट्यो छे,–हवे मारा
संसारनो अंत आवी गयो; मारा स्वसंवेदनप्रत्यक्षमां मोहनो–रागनो अंश पण नथी;
मोह हवे निर्मूळ थई गयो ने ज्ञानप्रकाश खीली गयो. अहो, आनंदमय ज्ञानसमुद्रमां
भगवान आत्मा तरबोळ थयो; शांतरसनो मोटो दरियो तेमां अमारो आत्मा लीन
थयो. जगतना जीवो पण आवा शांतरसना दरियामां मग्न थाओ....अंतरमां ऊंडा
ऊतरीने तेनो अनुभव करो.
अमारुं शुद्ध परमात्मतत्त्व अमारा साक्षात् अनुभवमां आव्युं, हवे अमे अजर–अमर
थया, हवे आ संसारना जन्म–मरण अमने नहि थाय.–
आत्मामां प्रगटी गयुं छे, अमारा अनुभवमां आवी गयुं छे.–अमारो आत्मा ज
अमारा अनुभवनो साक्षी छे.–आम धर्मीने अंतरमांथी साक्षी आवी गई छे.–आवी
दशा थई त्यारे जीव मोक्षनो साधक थयो.
वीतरागी देव–गुरुनी खरी भक्ति पण त्यारे थाय छे. चैतन्यतत्त्व केवुं छे ते जाण्या
वगर तेनो साचो महिमा क्यांथी आवे? एकला ज्ञानदर्शनथी भरेलो चैतन्य