Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : १७ :
अशुद्धता छे, तेनाथी अत्यंत जुदुं मारुं ज्ञायकतत्त्व एक छे ते शुद्ध छे.–आवा
शुद्धस्वरूपना अनुभवथी धर्मी जीव तृप्त–तृप्त वर्ते छे. ते जाणे छे के मारा स्वरूपथी हुं
प्रतापवंत छुं. मारा स्वरूपना महान आनंद पासे जगतनी बीजी कोई चीज मने
महिमावंत लागती नथी.
अहा, आवा आत्मअनुभवमां केटली धीरज! आखा जगतथी निरपेक्षपणे,
भंग–भेदना विकल्पोथी पण पार थईने अंतरमां एकला ज्ञायकभावपणे धर्मी पोताने
अनुभवे छे, तेमां अपार धीरज छे, परम गंभीरता छे; चैतन्यनो महान प्रताप तेमां
प्रगटे छे. धर्मी निःशंक कहे छे के आवो महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट्यो छे,–हवे मारा
संसारनो अंत आवी गयो; मारा स्वसंवेदनप्रत्यक्षमां मोहनो–रागनो अंश पण नथी;
मोह हवे निर्मूळ थई गयो ने ज्ञानप्रकाश खीली गयो. अहो, आनंदमय ज्ञानसमुद्रमां
भगवान आत्मा तरबोळ थयो; शांतरसनो मोटो दरियो तेमां अमारो आत्मा लीन
थयो. जगतना जीवो पण आवा शांतरसना दरियामां मग्न थाओ....अंतरमां ऊंडा
ऊतरीने तेनो अनुभव करो.
नवतत्त्वना अनुभवमां अशुद्धतानो अनुभव छे; तेनाथी भिन्न एक
ज्ञायकतत्त्वना अनुभवमां शुद्धतानो अनुभव छे, ने तेमां आनंदनी धारा उल्लसे छे.
अमारुं शुद्ध परमात्मतत्त्व अमारा साक्षात् अनुभवमां आव्युं, हवे अमे अजर–अमर
थया, हवे आ संसारना जन्म–मरण अमने नहि थाय.–
अब हम अमर भये...न मरेंगे...
या कारन मिथ्यात दियो तज, फिर क्यों देह धरेंगे...अब हम.
अमारा अंतरमां भगवान आत्मा स्वानुभवथी प्रसिद्ध थयो छे, त्यां मोक्षदशा
माटे भगवानना कहेण आवी गया छे. भगवाने जेवुं स्वरूप कह्युं तेवुं अमारा
आत्मामां प्रगटी गयुं छे, अमारा अनुभवमां आवी गयुं छे.–अमारो आत्मा ज
अमारा अनुभवनो साक्षी छे.–आम धर्मीने अंतरमांथी साक्षी आवी गई छे.–आवी
दशा थई त्यारे जीव मोक्षनो साधक थयो.
धर्मी पोताने सदाय ज्ञानदर्शनथी परिपूर्ण स्वरूपे अनुभवे छे. आवा स्वरूपने
समज्या पछी आत्मानुं जे बहुमान अने महिमा आवे ते अलौकिक होय छे; ने
वीतरागी देव–गुरुनी खरी भक्ति पण त्यारे थाय छे. चैतन्यतत्त्व केवुं छे ते जाण्या
वगर तेनो साचो महिमा क्यांथी आवे? एकला ज्ञानदर्शनथी भरेलो चैतन्य