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आम ज्ञानने अने रागने भिन्नभिन्न अनुभवमां लेतां ज्ञानीने आत्मज्ञान उदय पामे
छे; ते ज्ञाननी साथे ज तेनी निःशंक प्रतीत वर्ते छे; ने ज्ञान–श्रद्धापूर्वक तेमां ज ठरतां
परम आनंद अनुभवाय छे.–आ रीते साध्यनी सिद्धि थाय छे.
भाव ते आत्मा छे, तेटलो ज हुं छुं; ने चेतनपणाथी बहार एवा रागादि अन्य
कोई भावो ते खरो आत्मा नथी, ते मारुं स्वरूप नथी;’–आम धर्मी पोताने ज्ञाननी
अनुभूतिरूपे जाणे छे. आवी अनुभूतिमां कांई एकलुं ज्ञान नथी, आत्माना
अनंतगुणोनी निर्मळतानुं तेमां वेदन छे. आवा वेदनपूर्वक आत्माने जाण्यो ते साचुं
ज्ञान छे, ने तेने ज साचा आत्मानी श्रद्धा होय छे. जेने जाणे तेनी श्रद्धा करी शके;
वस्तुने जाण्या वगर श्रद्धा कोनी? जाणेलानुं ज श्रद्धान होय,–एम कहेवाथी
कांई श्रद्धानी किंमत घटी जती नथी. आत्मवस्तु परभावथी जुदी, केवी अने केवडी
महान छे, ते ज्ञानमां आवे छे ते ज वखते ज्ञानीने तेनी श्रद्धा थाय छे के ‘आ वस्तु
हुं.’ अने ते ज वखते निर्विकल्प अनुभूति पण थाय छे के ‘आ वस्तु हुं.’ अने ते ज
वखते निर्विकल्प अनुभूति पण थाय छे. आवा अनुभवज्ञानने ज अहीं ज्ञान कह्युं छे.
आवुं ज्ञान पूर्वे कदी एकक्षण जीवे कर्युं नथी. आवा ज्ञान वगर कोई कहे के अमने
आत्मानी श्रद्धा थई गई छे,–तो तेनी श्रद्धा तो गधेडाना शींगडानी श्रद्धा जेवी मिथ्या
छे. आत्मा केवो छे ते जाण्यो ज नथी तो ते श्रद्धा कोनी करी? आत्मानो अचिंत्य गंभीर
स्वभाव जेवो छे तेवो जाणवामां आवे ते ज क्षणे परिणाम रागादिथी जुदा पाडीने,
चैतन्यस्वभावमां तन्मय थया वगर रहे नहि. आवा भेदज्ञान सहित ज्ञान–दर्शन–
चारित्र प्रगटे छे ने शुद्ध आत्मा सधाय छे. आ सिवाय बीजी रीते आत्मा सधातो नथी
ने धर्म थतो नथी.
जाणतां तेमां ज पोतानुं अस्तित्व मानीने रोकाई गयो, तेथी भिन्न ज्ञाननो अत्यंत
मधुर चैतन्यस्वाद तेने आवतो नथी एटले आत्मा साचा स्वरूपे तेने अनु