Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : २५ :
अरे, लोकोने बहारमां अमेरिका वगेरे परदेशनो महिमा आवे छे ने सुख माटे
त्यां दोडे छे;–पण ए तो खोटा झांवा छे. अंदर अमर–आतमराम जे अनंत चैतन्य
संपत्तिथी भरेलो स्वदेश छे–तेमां साचुं सुख छे.
आ आत्माना स्वभावनी अपूर्व सूक्ष्म वात छे, ते शांतिथी सांभळवी.
आत्मानो पूर्ण ज्ञानस्वभाव छे तेने लक्षगत करतां अंदर अपूर्व शांति थाय छे; एना
वगर बहारमां ने शुभाशुभ भावमां जीव गमे तेटला झांवा नाखे तेमां अंशमात्र शांति
नथी. पोतानो आनंदस्वभाव, तेनाथी खसीने परभावमां आव्यो त्यारे जीवने शुभ–
अशुभ रागनुं वेदन थयुं, ते वेदनमां दुःख छे, आकुळता छे, ते ज्ञान वगरनुं होवाथी
अज्ञानरूपे छे, ते ज संसार छे. तेनाथी निवर्तवानी एटले के तेनाथी छूटीने पोताना
आनंदस्वरूपमां प्रवृत्ति जीवने क्यारे थाय? ते अहीं बतावे छे.
परमात्मा अरिहंतदेव अने साक्षात् संतज्ञानीनी बहारथी शुभरागथी भक्ति
जीवे अनंतवार करी, पण संसारथी तेनो छूटकारो न थयो ने शांति तेने न मळी; केमके
सर्वज्ञनो अने संतोनो साचो हुकम शुं छे, तेमनी साची आज्ञा शुं छे, –ते जीव कदी
समज्यो न हतो, सर्वज्ञदेवनो अने संतोनो हुकम–आज्ञा ए छे के भाई! पहेलांंमां
पहेलांं आत्मानो जिज्ञासु थईने, ‘हुं एक अखंड ज्ञानानंद स्वरूप शुद्ध छुं’ एम तुं तारा
अंतरना स्वसंवेदनथी नक्की कर. आम नक्की करवाथी तने तारा स्वभावमां प्रवृत्ति थशे
अने रागादि परभावथी निवृत्ति थशे. आ ज विधिथी तारा जन्म–मरणनो अंत आवशे
ने तने परम आनंदनी प्राप्ति थशे. बापु! आ ज सीधो सरळ ने सर्वोत्कृष्ट मार्ग छे, आ
एक ज मार्ग छे; आथी हळवो एटले के आथी विपरीत बीजो मार्ग मानीश तो आ
भवदुःखथी तारो छूटकारो कदी नहि थाय. समाज आ वात समजे के न समजे, पण
भाई! तुं तारा हित माटे आ समजी ले;–आत्माना हितनो मार्ग तो आ ज छे.
मोक्षार्थी जीवे केवा आत्मानो निर्णय करवो–तेनी आ वात छे. आत्माना हितनी
जेने कामना छे, जेने भवना दुःखनो त्रास छे, ने संसारनी (पुण्य–पापनी) अभिलाषा
जेने नथी,–
नो’य पूजादिनी जो कामना रे...
न्होय व्हालुं अंतर भवदुःख...
आवा जिज्ञासु जीवे केवा आत्मस्वरूपनो निर्णय करवो तेनी आ वात छे. प्रभु,
परम आनंदना निधान तारामां छे, तेने निर्णयमां ले. जाणनार स्वभाववाळुं कोण छे
तेने लक्षमां तो ले.