Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : २९ :
लीधे जीव तेने रागादिथी सहित अनुभवे छे, आवो अशुद्ध अनुभव ते ज
भवचक्रनुं बीज छे. ने परभावोथी अलिप्त चिदानंद तत्त्वनो अनुभव ते मोक्षनुं बीज
छे. अरे, आवो मनुष्य अवतार पामीने पण जो भवचक्रना फेरा मटे एवो उपाय जीव
न करे तो मनुष्यपणुं मळ्‌युं शा कामनुं? माटे हे भाई! जगतनी प्रशंसा के निंदानी
अपेक्षा छोडीने, तुं तारा शुद्ध स्वभावनो एवो निर्णय कर के तेनो अनुभव थाय ने
भवचक्रना फेरा मटी जाय.
[मोरबीमां गुरुदेव चार दिवस रह्या; त्यारबाद चैत्र सुद छठ्ठे मोरबीथी
जामनगर पधार्या. ज्यारे आप आ आत्मधर्म वांचता हशो त्यारे पू. गुरुदेव वांकानेर
बिराजता हशे ने चैत्र सुद तेरसे महावीर भगवाननो अद्भुत महिमा समजावीने
तेमनो मार्ग बतावता हशे.]
विरलो
प्रश्न:–आप आत्माना स्वभावने आश्रित जे मोक्षमार्ग कहो छो, एवो
स्वाश्रित, राग वगरनो मोक्षमार्ग साधनारा जीवो तो कोईक
विरला ज होय!
उत्तर:–भाई, स्वाश्रित–मोक्षमार्ग साधनारा जीवो भले विरल होय,
पण जे कोई मोक्षमार्ग साधनारा विरल जीवो छे ते बधाय आवा
स्वाश्रित भावथी ज मोक्षमार्गने साधे छे, ने बीजा
कोई पराश्रितभावथी मोक्षमार्ग सधातो नथी–एम सम्यक्
मोक्षमार्गनो तुं निर्णय कर. मुमुक्षुओने मोक्षने माटे आ एक ज
मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
सम्यक् मार्गने साधनारा जीवो विरला होय–तेथी कांई एनाथी
विपरीत अन्य मार्ग तो न मनाय; ऊलटुं ते मार्गनो वधारे महिमा
लावीने तेने आदरवो जोईए. माटे स्वाश्रितमार्गने ओळखीने ते
मार्गने आदर...ते मार्गे जा...एटले तुं पण मोक्षने साधनारा
विरलाओमांनो एक हीरलो बनी जईश. दुनिया सामे जोईने बेसी न
रहे केमके–
बहु लोक ज्ञानगुणे रहित, आ पद नहि पामी शके;
रे, ग्रहण कर तुं नियत आ जो कर्म–मोक्षेच्छा तने.