Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र: २४९८
अरिहंत भगवानी साची स्तुति करनार
धर्मात्मानी अलौकि दशानुं वर्णन
[जामनगर शहेरना प्रवचनमांथी: समयसार गा. ३१]
चैत्र सुद छठ्ठे मोरबी–जिनमंदिरमां ‘साचो अंतरस्वामी
आतम दिलमां ध्यावजे रे....’ एवा भावभीना स्तवनद्वारा
वीरनाथनी भक्ति करावीने गुरुदेव जामनगर पधार्या. भव्य–
उन्नत जिनालयमां वीरनाथ भगवानना दर्शन बाद
मंगलप्रवचनमां कह्युं के पोतानो आत्मा महा आनंदनो सागर
छे, ते आनंदस्वरूपनुं अनादिथी विस्मरण हतुं तेथी जीव दुःखी
हतो; हवे ते आनंदस्वरूप आत्माने जाणीने तेनुं साचुं स्मरण
कर्युं ते अपूर्व मंगळ छे. त्यारबाद बपोरथी समयसार गाथा
३१ उपरना प्रवचनो द्वारा गुरुदेवे अरिहंत भगवाननी
परमार्थ स्तुतिनुं स्वरूप समजाव्युं.
आ समयसारमां सर्वज्ञभगवाननी वाणीनो सार छे. तेमां देह अने आत्मानी
भिन्नता समजावीने एम कह्युं के–शरीर जड छे तेथी तेना वर्णन वडे तेनाथी भिन्न
एवा आत्मानुं साचुं वर्णन थतुं नथी, एटले भगवानना शरीरना स्तवनवडे
भगवानना आत्मानी साची स्तुति थती नथी; तेमज शुभविकल्पो द्वारा के
ईन्द्रियज्ञानद्वारा पण चैतन्यस्वरूप आत्मानुं स्तवन थतुं नथी. तो हवे अरिहंत
भगवानना आत्मानुं परमार्थ स्तवन केम थाय? ते वात आ ३१ मी गाथामां
अलौकिक रीते आचार्यदेवे समजावी छे. स्वसन्मुख थईने जे पोताना अतीन्द्रिय
आत्माने अनुभवे छे ते ज जीव, शरीर–ईन्द्रियो तथा रागथी भिन्न ज्ञानस्वभावने
अनुभवतो थको सर्वज्ञ अरिहंत परमात्मानी साची स्तुति करे छे. ईन्द्रियोथी भिन्न
आत्माने जे अनुभवे छे ते ज ईन्द्रियोने जीतीने जिनेन्द्रिय थाय छे. ईन्द्रियोथी पोतानी
भिन्नता ज जे जाणतो नथी ने ईन्द्रियोने ज (तथा ईन्द्रियज्ञानने ज) पोतानुं स्वरूप
माने छे ते ईन्द्रियोने जीतशे क्यांथी–ने अतीन्द्रियज्ञानवाळा अरिहंतोने ते ओळखशे
क्यांथी? अरिहंतोने ओळख्या वगर तेमनी साची स्तुति क्यांथी थाय?