Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : ३३ :
मारुं चैतन्यतत्त्व रागथी पार छे, तेनो अनुभव करतां चैतन्यमांथी अमृतना
निधान झरे छे, एमां कोई बीजानो प्रवेश नथी.–आवुं तत्त्व ज हुं छुं. मारुं बीजुं
कांई नथी.
अहा, एकवार परभावथी जुदो पडीने तुं तारा आत्मानो अनुभव तो करी जो,
तुं न्याल थई जईश. अज्ञानभावे पोतानी चैतन्यवस्तुनो ज नकार करीने अज्ञानी
जीवो मोटी भावहिंसा करे छे, ते भावमरण छे. तेनाथी छोडाववा संतो करुणाथी कहे छे
के हे भाई! आ शरीर तो रजकणोनुं बनेलुं छे ने ते राख थईने धूळमां रखडशे; ते
कांई तुं तथी. तुं तो अविनाशी चैतन्यतत्त्व छो. तुं ईन्द्रियोथी पार अतीन्द्रियस्वरूप छो.
अरे, तारी महान लक्ष्मीने चुकीने तुं रागादिवडे के संयोगवडे मोटाई लेवा मागे छे तो
तुं गरीब–भीखारी छो. बीजा पासे भीख कोण मांगे? जे गरीब होय ते. जे आत्मा
पोताना सुखने माटे परवस्तुनी ईच्छा करे छे (–पछी एक पाई मांगतो होय के करोडो
रूपिया मांगतो होय) ते भीखारी छे. ने जे पोते पोताना सुखस्वभावने अनुभवे छे,
कोई पण परचीजने ईच्छतो नथी, ते मोटो चैतन्य वैभवसंपन्न महाराजा छे.
मारी चैतन्यवस्तुमां राग पण नथी, त्यां परवस्तु केवी? हुं पोते ज भगवान,
जगतमां सर्वश्रेष्ठ चैतन्यराजा छुं. आवा सम्यक्स्वभावी आत्मानो अनुभव करो.
अनंत जीवो आवो अनुभव करीकरीने मोक्षे सीधाव्या छे. माटे, कठण समजीने तुं आ
वात काढी न नांखीश; कठण लागे के सहेलुं लागे, पण आ रीत अने आ उपायवडे
आत्माना साचा स्वभावनो अनुभव कर्ये ज आ भवदुःखथी छूटकारो थाय तेम छे;
बीजो तो कोई दुःखथी छूटवानो उपाय नथी. शुभ–अशुभ जे कांई उपाय कर ते बधाय
सुखने माटे व्यर्थ छे, अनादिथी ते करवा छतां किंचित् सुख तेनाथी न मळ्‌युं; साचो
उपाय तेनाथी जुदो छे. रागथी जुदो, जेमां रागनो प्रवेश नथी, रागवडे जेने जाणी
शकातो नथी, जे पोते पोताना ज्ञानगम्य छे, –एवा आत्माने जाणीने तेनो अनुभव
करतां तने महा आनंद थशे.
भाई, तुं जो के रागादि वृत्तिओनुं वलण तो बहार जाय छे, ने ज्ञान तो रागथी
जुदुं अंतर्मुख वेदाय छे. आवा ज्ञाननुं वेदन राग वगरनुं छे. तेनो अनुभव करीने हे
जीव तुं चैतन्यना आनंदनी लहेरमां आव. संसारना संकल्पनी जाळमांथी बहार
आवीने एकवार तो निर्विकल्प थईने तारा आनंदमय तत्त्वने देख! तारा स्वसंवेदनमां
कोई परभाव आवता नथी. कोई रागनी, कोई विकल्पनी एवी ताकात नथी