Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र: २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
एक हतो सिह; एक हतो वांदरो
[एक वांदरो मूरख, अने
एक सिंह मूरख; एक वांदरो
विचक्षण, अने एक सिंह
विचक्षण; ए संबंधी बोधकथा
आपे गतांकमां वांची. मूरख सिंह
अने वांदरो तो शरीरनी छायाने
ज पोतानुं स्वरूप मानीने
अज्ञानथी दुःखी थया; अने
विचक्षण सिंह तथा वांदराए तो
छायाथी भिन्न पोताना असली
स्वरूपने जाण्युं ने सुखी थया. आ
रीते असली स्वरूपनुं ज्ञान ते
सुखी थवानो उपाय छे. अने
नकली (उपाधिरूप) भावोने साचुं
स्वरूप मानवारूप अज्ञान ते
दुःखनुं कारण छे आ संबंधी ४०
जेटला लेखो आवेला; तेमांथी
केटलांक लेखोनुं दोहन गतांकमां आपेलुं, बाकीनां लेखोनो सार अहीं आपवामां आवे
छे. आ लेखो जिज्ञासुओने खूब गम्या छे.
]
* एक जिज्ञासु लखे छे के जेम छायाने पोतानी माननारा जीवो दुःखी थया,
तेम रागादि परभावो के जेओ चैतन्यनी छाया जेवा छे पण असली
चैतन्यस्वरूप नथी, ते स्वरूपे पोताने माननारा जीवो अज्ञानथी दुःखी थाय
छे. पुरुषार्थसिद्धि उपायमां ए वात करी छे के जीवनो स्वभाव रागादि
परभावोथी रहित होवा छतां तेनाथी सहित मानवो अशुद्ध मान्यता ज
संसारदुःखनुं बीज छे; अने ते परभावरूपी छायाथी रहित शुद्धजीवने
अनुभववो ते मोक्षना महासुखनुं बीज छे.