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विचक्षण, अने एक सिंह
विचक्षण; ए संबंधी बोधकथा
आपे गतांकमां वांची. मूरख सिंह
अने वांदरो तो शरीरनी छायाने
ज पोतानुं स्वरूप मानीने
अज्ञानथी दुःखी थया; अने
विचक्षण सिंह तथा वांदराए तो
छायाथी भिन्न पोताना असली
स्वरूपने जाण्युं ने सुखी थया. आ
रीते असली स्वरूपनुं ज्ञान ते
सुखी थवानो उपाय छे. अने
नकली (उपाधिरूप) भावोने साचुं
स्वरूप मानवारूप अज्ञान ते
दुःखनुं कारण छे आ संबंधी ४०
जेटला लेखो आवेला; तेमांथी
केटलांक लेखोनुं दोहन गतांकमां आपेलुं, बाकीनां लेखोनो सार अहीं आपवामां आवे
छे. आ लेखो जिज्ञासुओने खूब गम्या छे.
चैतन्यस्वरूप नथी, ते स्वरूपे पोताने माननारा जीवो अज्ञानथी दुःखी थाय
छे. पुरुषार्थसिद्धि उपायमां ए वात करी छे के जीवनो स्वभाव रागादि
परभावोथी रहित होवा छतां तेनाथी सहित मानवो अशुद्ध मान्यता ज
संसारदुःखनुं बीज छे; अने ते परभावरूपी छायाथी रहित शुद्धजीवने
अनुभववो ते मोक्षना महासुखनुं बीज छे.