Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९८
आत्माने साधवानी रीत
आत्मराजानी सेवा वडे ज आत्मा सधाय छे;
रागनी सेवा वडे आत्मराजा रीझता नथी.
[राजकोट शहेरना प्रवचनोमांथी समयसार गा. १७–१८]
दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप आत्मा छे, ते ‘राजा’ छे, एटले के स्वरूपनी श्रेष्ठ
लक्ष्मीथी ते शोभायमान छे; आवा चैतन्यराजाने ओळखीने–श्रद्धीने मोक्षार्थी जीवे तेनी
सेवा करवी.
जे जीव मोक्षार्थी छे तेनी आ वात छे. मोक्षार्थी एटले आत्मानो एकनो ज अर्थी,
बीजानो अर्थी नहीं. जे संसारनो अर्थी छे ते मोक्षनो अर्थी नथी. जे रागनो–पुण्यनो–
वैभवनो अर्थी छे ते आत्मानो अर्थी नथी; जगतने सारूं लगाडवानो के जगत पासेथी
मान लेवानो जे अर्थी छे ते आत्मानो अर्थी नथी. अहा, जे आत्मार्थी थयो छे, जेने
एक आत्मार्थ साधवानुं ज काम छे, बीजी कोई भावना नथी, एवो जीव पोताना
चिदानंदस्वरूप आत्माने जाणीने तेने ज सेवे छे. आत्मानो ज अर्थी थईने आत्माने
सेवतां जरूर आत्माना आनंदनी प्राप्ति थाय छे.
जेने हवे संसारना झेर उतारी नाखवा छे ने मोक्षसुखनां अमृतनो स्वाद
चाखवो छे ते जीवो स्वानुभूतिवडे पोताना शुद्धआत्माने ज सेवे छे.
जुओ, पहेलेथी ज स्व–आत्माने सेववानी वात करी; परनी सेवानी वात न
करी. पहेलांं देव–गुरु–शास्त्रनी सेवाथी आत्मानी प्राप्ति थशे एम न कह्युं; पहेलेथी ज
आत्माने जाणवानी–एटले के अनुभववानी वात करी छे. आवा आत्माने जाणवो
अनुभववो ते ज देव–गुरु–शास्त्रनी सेवा छे केमके देव–गुरु–शास्त्रोए आत्मानो
अनुभव करवानुं ज कह्युं छे.
आत्माने जाणवो–श्रद्धवो–अनुभववो त्रणे एक साथे थाय छे, ते आत्मानुं
सेवन छे. भाई! आवो मनुष्य अवतार पामीने तारा आत्मानो परम आनंद