Atmadharma magazine - Ank 342
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : चैत्र: २४९८
मागे छे....पण क्यां स्थाने जवाथी दुःखथी छूटाशे एनी खबर नथी, ने
अज्ञानथी रागमां–पुण्यमां सुख मानीने पाछा संसारना दावानळमां ज सळगी
रह्या छे. तेने छोडाववा करुणा करीने संतो शांतिनी रीत बतावे छे.
प्रभो! आ संसारना घोर कषायदुःखोथी छूटवा तुं ज्ञान–आनंदना धाम
एवा तारा आत्माने ओळखीने तेनी सेवा कर. जेने ओळखतां, जेनी सामे नजर
करतां ज एवा आनंदनुं स्फूरण थशे के विकल्पोनी ने दुःखोनी ईन्द्रजाळ तरत ज
अलोप थई जशे. तारे तारा आनंदनुं स्वराज्य जोईतुं होय तो तारा
चैतन्यराजाने ज तारो मत आपजे....बीजा कोईने तारो मत आपीश नहि. मत
एटले मति....बुद्धि; तारी बुद्धिने तारा चैतन्यतत्त्वना परम महिमामां जोडजे.
अहा! मारुं चैतन्यतत्त्व, ते ज सौथी उत्कृष्ट छे, एनाथी ऊंचुं बीजुं कोई नथी–के
जेने हुं मारो मत आपुं. आ रीते धर्मी पोतानी मतिना मतने पोताना
स्वभावमां ज जोडे छे, तेनो ज आदर–प्रेम–बहुमान करीने अनुभवमां ल्ये छे.
अहा, मारा चैतन्यना आनंदनुं स्फूरण थतां ज विकल्पोनी जाळ तत्क्षण
अलोप थई जाय छे. चेतना ज्यां विकल्पोथी अत्यंत जुदी पडी गई–आवी
चेतनास्वरूप आत्मा हुं छुं.–एम धर्मी पोताने अनुभवे छे.
सुखी थवुं होय तेणे शुं करवुं? के सुखी थवुं होय तेणे प्रथम ज
आनंदस्वरूप आत्माने जाणवो. मोक्षार्थिना प्रथममेव आत्मा ज्ञातव्यः....’
मोक्षार्थीए प्रथम ज आत्माने जाणवो.–जाण्यो त्यारे ज कहेवाय के जेने जाणवो छे
तेनी सन्मुख थईने तेनो अनुभव करे. अतीन्द्रिय ज्ञानवडे आवो आत्मा जणाय
छे, ने एने जाणतां ज अतीन्द्रिय आनंद सहित अनंतगुणनी शुद्धतानो अनुभव
थाय छे. अहा, आवा अनंत सामर्थ्यनी खाण चैतन्यप्रभु तुं पोते! तुं तारुं ज
सेवन कर. आत्मानी सन्मुख थईने ज्ञान–श्रद्धान–अनुचरणरूप सेवा करतां
आत्मा स्वयं मोक्षरूप परिणमे छे. आ ज रीते साध्यनी सिद्धि छे; बीजी कोई रीते
साध्यनी सिद्धि नथी.
आत्माना ज्ञानपूर्वक तेनुं श्रद्धान अने आचरण थाय छे. जाण्या
वगर श्रद्धा कोनी? ने ठरवुं शेमां? आत्माने जाणतां ज्ञाता–ज्ञेयना भेदनो विकल्प
पण रहेतो नथी, ज्ञान तो विकल्पथी पण पार छे. ज्ञान अने श्रद्धा तथा ते काळे
निर्विकल्प अनुभूति–ए बधुं एकसाथे ज छे. प्रथम आत्माने जाणवो ने
पछी श्रद्धवो