चैतन्यभावपणे जे अनुभवाय छे ते ज हुं छुं,–आम अनुभव करवो ते आत्मप्राप्तिनी
रीत छे. आत्मा एवी वस्तु छे के चैतन्यपणे ज ते अनुभवमां आवे छे, बीजा
कोई भानथी अनुभववा मागे तो आत्मा अनुभवमां आवी शके नहीं.
राजा थईने पोते पोताने सेववानी आ वात छे. अरे, आत्मानो अनुभववा माटे
रागनी मदद मागवी ए ते कांई चैतन्यने शोभे छे? मारे कोईकनी मदद जोईए, मारे
राग जोईए–एम जे दीनता करे छे ते तो कायर छे, एवा कायर जीवो आत्मराजाने
भेटी शक्ता नथी, तेने अनुभवी शक्ता नथी. आ तो शूरवीरोनुं काम छे; वीतरागनो
मार्ग ए शूरवीरनो मार्ग छे.–मने मारा आत्मअनुभवमां परनो आश्रय छे ज नहीं,
विकल्पनो आश्रय मने नथी. स्वाधीनपणे मारी चेतनावडे ज हुं मारा आत्माने
अनुभवुं छुं.–आवा अनुभववडे मोक्षना द्वारमां प्रवेश थाय छे.
सूक्ष्मता वडे बीजा बधा भावोने जुदा पाडीने जे आ एकला चैतन्यभावपणे परम
शांत तत्त्व अनुभवाय छे–ते ज हुं छुं–एम आत्मज्ञान थाय छे; आवा आत्मज्ञानमां
जेवो आत्मा जणायो ते ज हुं छुं एम निःशंक श्रद्धा थाय छे; आवा ज्ञान
अने श्रद्धापूर्वक आत्मामां ठरतां आत्मानी सिद्ध थाय छे.
आत्मानो अनुभव थई शके छे. धर्मीने एवो अनुभव थयो छे.–पहेलांं पण आत्मा तो
आवो अनुभूति स्वरूप ज हतो, कांई परभावरूप थयो न हतो, पण अज्ञानदशामां
पोताने रागादिभावरूपे ज मानीने तेने ज सेवतो हतो, रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूप
आत्माने कदी एक क्षण पण सेव्यो न हतो. हवे परभावथी भिन्न चैतन्यस्वरूप
आत्मानुं भान कर्युं त्यारे अपूर्व ज्ञान–श्रद्धा–आचरण प्रगट्या, ने त्यारे तेणे
ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा करी. एटले तेने साध्य आत्मानी सिद्धि थई, तेने मोक्षमार्ग
प्रगट्यो. ते जाणे