
थयो त्यां आत्मा पोते ज पोतानी चैतन्यशक्तिना निजरसथी प्रगट थाय छे, पोतानी
शक्तिथी ज ते सम्यक्त्वादिरूपे तथा आनंदरूपे परिणमी जाय छे. अहो! चैतन्यदरियो अंदरथी
पोते ज पर्याय उल्लसे छे, तेमां बहारनुं कोई कारण नथी, कोई विकल्पो त्यां रहेतां नथी.
अपूर्व निधान पासे देवलोकनां निधान अत्यंत तूच्छ छे. ईंद्र वगेरे पोते समकिती छे, अने
पोताने प्रगटेली ते चैतन्यऋद्धिनुं वर्णन भगवान पासे के संतो पासे सांभळतां आनंदित
थाय छे के वाह! मारा आवा अपूर्व निधान में मारामां देखी लीधा छे; ने ते ज संतो
संभळावे छे.
भगवानना कोई अपूर्व मार्ग छे. भगवाननो मार्ग एटले तारा आत्माना स्वभावनो आ
अपूर्व मार्ग छे. अत्यार सुधी आ मार्ग भूलीने तें बीजी रीते मार्ग मानी लीधो हतो, एमां
क््यांय तारा भवना आरा न आव्या. हवे एकवार आ मार्गमां आव. तने तारो आत्मा
एवो देखाशे के आखा जगतथी अत्यंत छूटो हुं छुं. चैतन्यरसनो आखो समुद्र आत्मामां
उल्लसे छे, ने पोते पोताना आत्मरसथी ज नयपक्षोने ओळंगीने निर्विकल्पभावने पहोंची
वळे छे. ज्ञान अंतर्मुख थयुं त्यां आत्मा झडपथी–तुंरत ज पोताना महा आनंदस्वरूपे प्रगटे
छे, परमात्मस्वरूपे पोते प्रसिद्ध थाय छे. जगतनो सौथी ऊंचुं एवुं महान परम आत्मतत्त्व हुं
छुं–एम धर्मी अनुभवे छे. ज्ञानरसथी उल्लसतो आ भगवान स्वानुभवमां प्रगट्यो–तेने
सम्यग्दर्शन कहो, ज्ञान कहो, आनंद कहो, परमात्मा कहो; अनंतगुणनो निर्मळ रस तेमां एक
साथे उल्लसे छे. आवा आत्माने निभृतपुरुषो–आत्मलीन आत्माना रसीला जीवो अनुभवे
छे. अहो! आ अनुभूति अदभुत् छे! विकल्पवडे एना महिमानो पार आवे तेम नथी.
एवा निर्विकल्पवेदनवडे चैतन्यना अमृत पीधां; आत्मा जेवो