Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
करे? अरे, चैतन्यना अनुभवमां तो केटली धीरज! ज्ञाननी केटली गंभीरता! चैतन्यसन्मुख
थयो त्यां आत्मा पोते ज पोतानी चैतन्यशक्तिना निजरसथी प्रगट थाय छे, पोतानी
शक्तिथी ज ते सम्यक्त्वादिरूपे तथा आनंदरूपे परिणमी जाय छे. अहो! चैतन्यदरियो अंदरथी
पोते ज पर्याय उल्लसे छे, तेमां बहारनुं कोई कारण नथी, कोई विकल्पो त्यां रहेतां नथी.
अहो, आत्माना अनुभवनी आवी वात तीर्थंकरभगवान कहेता होय त्यारे ईन्द्रो–
गणधरो ने चक्रवर्ती जेवा पण ते सांभळीने आनंदथी उल्लसी जाय छे के वाह! चैतन्यना आ
अपूर्व निधान पासे देवलोकनां निधान अत्यंत तूच्छ छे. ईंद्र वगेरे पोते समकिती छे, अने
पोताने प्रगटेली ते चैतन्यऋद्धिनुं वर्णन भगवान पासे के संतो पासे सांभळतां आनंदित
थाय छे के वाह! मारा आवा अपूर्व निधान में मारामां देखी लीधा छे; ने ते ज संतो
संभळावे छे.
अहो, चैतन्यना अनुभवनी कथा केवी अद्भुत छे! ईंद्रो जे सांभळवा माटे स्वर्गमांथी
मनुष्यलोकमां आवे ए कथा तो शुं ‘चकला–चकलीनी वार्ता’ जेवी हशे? बापु! आ तो
भगवानना कोई अपूर्व मार्ग छे. भगवाननो मार्ग एटले तारा आत्माना स्वभावनो आ
अपूर्व मार्ग छे. अत्यार सुधी आ मार्ग भूलीने तें बीजी रीते मार्ग मानी लीधो हतो, एमां
क््यांय तारा भवना आरा न आव्या. हवे एकवार आ मार्गमां आव. तने तारो आत्मा
एवो देखाशे के आखा जगतथी अत्यंत छूटो हुं छुं. चैतन्यरसनो आखो समुद्र आत्मामां
उल्लसे छे, ने पोते पोताना आत्मरसथी ज नयपक्षोने ओळंगीने निर्विकल्पभावने पहोंची
वळे छे. ज्ञान अंतर्मुख थयुं त्यां आत्मा झडपथी–तुंरत ज पोताना महा आनंदस्वरूपे प्रगटे
छे, परमात्मस्वरूपे पोते प्रसिद्ध थाय छे. जगतनो सौथी ऊंचुं एवुं महान परम आत्मतत्त्व हुं
छुं–एम धर्मी अनुभवे छे. ज्ञानरसथी उल्लसतो आ भगवान स्वानुभवमां प्रगट्यो–तेने
सम्यग्दर्शन कहो, ज्ञान कहो, आनंद कहो, परमात्मा कहो; अनंतगुणनो निर्मळ रस तेमां एक
साथे उल्लसे छे. आवा आत्माने निभृतपुरुषो–आत्मलीन आत्माना रसीला जीवो अनुभवे
छे. अहो! आ अनुभूति अदभुत् छे! विकल्पवडे एना महिमानो पार आवे तेम नथी.
अहा, आनंदनो नाथ आत्मा पोते प्रसिद्ध थयो त्यां हवे दुःख केवा? ने कर्म केवा?
अनादिथी अज्ञानीपणे विकल्पनां झेर पीधां हतां, हवे तो पूर्णानंदी–परमात्मा हुं पोते छुं–
एवा निर्विकल्पवेदनवडे चैतन्यना अमृत पीधां; आत्मा जेवो