Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 49

background image
: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : ९ :
छे तेवो साचो देखायो, ते ज सम्यग्दर्शन छे; पूर्ण आत्मा जेवो छे तेवो तेणे देखी लीधो, जाणी
लीधो; ते पक्षातिक्रांति थई गयो. सम्यग्दर्शनपर्यायरूप थयेला ते आत्माने ‘समयसार’ कहेवामां
आवे छे; तेने परमआत्मा कहे छे, तेने भगवान कहे छे. ते ज जगतमां सुखीया संत छे.
आत्माना आवा अनुभवनो घणो महिमा आगममां गायो छे; सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
ने आनंद ते आ अनुभवमां ज समाय छे, अनुभवथी ते जुदां नथी. मोक्षमार्ग पण आवा
अनुभवमां समाय छे.–
अनुभव चिंतामणि रतन, अनुभव है रसकूप;
अनुभव मारग मोक्षका, अनुभव मोक्षस्वरूप.
* महावीरनाथना वीरमार्गने प्रसिद्ध करतुं, चैत्रसुद तेरसनुं
प्रवचन आप हवे वांचशो *
आत्मा एवडो मोटो, जेनो जगमां छे नहीं जोटो.
महिमा घणो ऊंडो छे. अनंता गंभीरभावोथी भरेलो आत्मा एवडो
मोटो छे के जगतमां क््यांय एनो जोटो नथी. बधा ज शास्त्रोए चैतन्यनी
महानतानो महिमा गायो छे, अने छतां वचनथी एनो महिमा पूरो
पडतो नथी, अनुभवथी ज एनो पार पमाय छे.
ज्ञायकभावथी भरेलो, परमआनंदथी पूरो, अने ईंद्रियोथी पार
एवो महान पदार्थ स्वयं हुं ज छुं; आ चैतन्यथी ऊंची के सुंदर वस्तु ज
जगतमां कोई नथी–के जेमां. उपयोग ठरे. –आवा पोताना ज्ञायक
महात्माने तेणे लक्षमां लीधो ते जीव जगतनो नायक थयो.
अहा, आत्मानुं अचिंत्य वीतरागीसामर्थ्य, एनी अचिंत्य
विशाळता, एनी परम शांति,–श्रीगुरुमुखे जेनुं श्रवण करतां मुमुक्षुने हर्ष
थाय, जेनुं चिंतन करतां हर्षानंद जागे, अने जेनो अनुभव करतां तो......