Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १० : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
भगवान महावीरे साधेलो अने दिव्यध्वनि
द्वारा देखाडेलो आत्मानो स्वभाव
[वांकानेर: चैत्रसुद तेरसनुं मंगल प्रवचन: स. गा. १४४]
आजे भगवान वीरपरमात्माना जन्मनो मंगल दिवस छे. ते आत्मा तीर्थंकर थया
पहेलांं अनादि संसारमां रखडतां रखडतां, पूर्वभवोमां सम्यग्दर्शन पाम्या; ने पछी
उन्नत्तिक्रममां आगळ वधतां वधतां त्रीजा पूर्वभवमां मुनिदशामां १६ भावनापूर्वक
तीर्थंकरप्रकृति बंधाणी; ने छेल्ला भवे आ भरतक्षेत्रना अंतिम तीर्थंकरपणे अवतर्या; ईंद्रोए
जन्मकल्याणनो मोटो उत्सव कर्यो. तेनो आजे दिवस छे. भगवानना आत्माने सम्यग्दर्शन
तेम ज अवधिज्ञान तो जन्मथी ज हतां. पछी त्रीसवर्षनी वये कुमार अवस्थामां प्रभुने
जातिस्मरणज्ञान थयुं; पूर्वभवोमां आत्मा क््यां हतो ते देख्युं, ने वैराग्य घणो वधी गयो;
तेथी दीक्षा लईने मुनि थया. मुनि थईने आत्माना ज्ञान–ध्यानपूर्वक साडाबार वर्ष सुधी
विचारतां–विचारतां केवळज्ञान प्रगट कर्युं, ने अरिहंतपरमात्मा थया. आत्माना आनंदमां
झुलतां–झुलतां भगवान केवळज्ञान पाम्या हता. केवळज्ञान थया पछी ते वीरनाथ भगवाने
दिव्यध्वनि द्वारा आत्मानो केवो स्वभाव बताव्यो तेनुं आ वर्णन छे.
हुं ज्ञानस्वभाव छुं–एम जेणे श्रुतना अवलंबनथी नक्की कर्युं छे ते जीव ज्यारे मति–
श्रुतने अंतर्मुख करीने अंतरमां आनंदना नाथने भेटे छे, चैतन्यभगवानने स्पर्शे छे, त्यारे
नयना बधा विकल्पोथी ते छूटो पडी जाय छे, ने निर्विकल्पपणे विज्ञान–घनस्वभावमां
पहोंची जाय छे.
नयपक्षना विकल्प वगरनो आत्मा स्वानुभवना आनंदथी स्वयंमेव शोभे छे. जेम
भगवान अरिहंतदेवनुं शरीर आभूषण वगर ज स्वयंमेव शोभे छे; तेम चैतन्यतत्त्व पोते
स्वभावथी ज ज्ञान–आनंदमय छे, पोताना ज्ञान–आनंदवडे ते स्वयमेव शोभे छे. आवा
चैतन्यतत्त्वने शोभा माटे कोई विकल्पना आभूषणनी जरूर नथी. विकल्पलक्षणवडे
भगवान आत्मा लक्षित थतो नथी; विकल्पथी भिन्न थयेलुं जे ज्ञान,