Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 49

background image
: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : ११ :
ते ज्ञानना आभूषण वडे आत्मा शोभे छे, ते ज्ञानलक्षण वडे भगवानआत्मा लक्षित थाय छे.
आवा आत्माने लक्षमां लेवो ते भगवान महावीरनो सन्देश छे. आवी आत्मविद्या ते
हिंदुस्तानना घरनी विद्या छे. आवी अध्यात्मविद्या ए ज भारतनी मूळ विद्या छे.
अहा, सम्यग्दर्शन थतां आत्मा भगवान थई गयो. सम्यग्दर्शन थतां
स्वसंवेदनज्ञानमां आत्मा प्रत्यक्ष वेदाय छे. जेणे आवुं वेदन कर्युं ते जीव वीरना मार्गमां
आव्यो. धर्मीने अनुभूतिमां विकल्प न होवा छतां पोते स्वयं पोताने आनंदरूपे वेदाय छे.
विकल्पनुं तरणुं खसी जतां ओहो! आनंदनो मोटो पहाड देखाणो! वाह रे वाह! में मारा
चैतन्यभगवानने, मारा आनंदना दरियाने मारामां देखी लीधो; विकल्प वगर मारो आत्मा
मने स्वयं आस्वादमां आवे छे. आत्माना आनंदनो स्वाद लेवा माटे वच्चे विकल्पनी जरूर
पडे एवो आत्मा नथी; विकल्प वगरनो मारो चैतन्यरस मने स्वयं स्वादमां आवी रह्यो छे.–
आवी आत्माअनुभूति थई ते वीरनो मार्ग छे. पोते वीरना मार्गे चाल्यो जाय छे.
विकल्प साथे जेने कर्ता–कर्मपणुं छे ते जीव निर्विकल्प आत्माने अनुभवी शकतो
नथी, तेने सम्यक्त्वना आनंदनो स्वाद आवतो नथी. जे जीव विकल्पथी छूटीने
ज्ञानभावरूप परिणम्यो छे ते विकल्पने करतो नथी, विकल्पथी छूटो ने छूटो ज्ञानभावरूप
ज रहे छे. सम्यक्त्वादि ज्ञानभावरूप रहेवुं ने विकल्पना कर्ता पण थवुं–ए बे वात एक
साथे बनी नहि. जे ज्ञाता छे ते विकल्पनो कर्ता नथी, अने जे विकल्पनो कर्ता छे ते ज्ञाता
नथी. ज्ञानमां विकल्प नथी, विकल्पमां ज्ञान नथी. आम विकल्प अने ज्ञाननी भिन्नता
करीने ज्ञानरूप परिणमवुं ते वीरनो मार्ग छे. वीरनो मार्ग पाछो न फरे एवो छे.
महावीर परमात्मानुं आ कहेण छे के हे जीव! तारा चैतन्यमां विकल्पनो प्रवेश नथी.
आवा चैतन्यस्वभावने नक्की करीने ज्ञानमां ले, त्यां विकल्प तूटीने तने आनंदना
नाथनो भेटो थशे. आवो वीरनो मार्ग छे :–
हरिनो रे मारग छे शूरानो, कायरनुं नहिं काम जो..
प्रथम पहेलांं मस्तक मुकी....वळतां लेवुं हरिनुं नाम जो...ने.
हरिनो मारग एटले वीरनो मार्ग; ज्ञान अने रागनी भिन्नता जाणीने जेणे
अज्ञानने हर्युं छे ते हरि छे. महावीर भगवाने तो आवो मार्ग बताव्यो छे. आ