Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
देखनारी छे, ते पोताना आनंदरसना एक अंशनेय विकल्पमां जवा देती नथी. चैतन्यरस
परमशांत, तेने रागना आकुळरस साथे मेळ खाय नहि. मारो चैतन्यरस, तेमां विकल्पोनी
भठ्ठी नथी. हवे मारुं ज्ञान विकल्प तरफ खेंचातुं नथी, ज्ञान तो ज्ञानस्वरूपमां ज खेंचाईने,
पोते पोतामां मग्न थाय छे. आवा ज्ञानना अनुभवमां विकल्पनो आधार नथी. ज्ञान पोते
ज पोताना आधारे ज्ञानरूपे परिणमतुं थकुं, पोताने विकल्पथी भिन्न ज्ञानरूपे अनुभवे छे.
जेणे आवो अनुभव कर्यो ते जीव महावीरना मार्गमां आव्यो.
धर्मीने ज्ञानरसना प्रवाहमां वच्चे विकल्प आवतो नथी. विकल्प तो ज्ञानप्रवाहथी
जुदो ने जुदो बहार कांठे रहे छे, ज्ञानमां ते प्रवेशतो नथी. विकल्पना कोई अंशनुं कर्तृत्व–के
वेदवापणुं ज्ञानीना ज्ञानमां रह्युं नथी. ज्ञानीनुं ज्ञान तो विकल्पथी पार शांतरसरूप थयुं छे.
आवुं ज्ञान ते भगवाने कहेला बारे अंगनो सार छे. अहा, चैतन्यना आनंदना रस अमे
चाख्या, जगतना विषयरसमां हवे अमारी परिणति जाय नहि. चैतन्यना आनंदरस पासे
जगतना बधाय रस तूच्छ छे. दुनिया तो गांडी छे, दुनिया शुं बोलशे? निंदा करशे के प्रशंसा
करशे? ते जोवा ज्ञानी रोकाता नथी. दुनिया पासेथी सर्टीफिकेट (प्रमाणपत्र) लेवुं नथी.
अमारा अनुभव–ज्ञानवडे अमारा आत्मानुं प्रमाणपत्र मळी गयुं छे; पोताना आत्मामांथी
शांतिनुं वेदन आवी गयुं छे त्यां बीजाने पूछवापणुं रहेतुं नथी. अमे हवे भगवानना
मार्गमां भळ्‌या छीए...वीरभगवाने कहेलो मार्ग आत्मामां देखी लीधो छे...ने ते मार्गे
अल्पकाळमां पूर्ण आत्माने साधीने अमे पण परमात्मा थईशुं.
(आ रीते धर्मीए स्वानुभवथी वीरना कहेणनो स्वीकार कर्यो छे.)
जे एकला दोषने देखे छे ने गुणने नथी देखतो,
ते दोषने छेदी शकतो नथी, गुणने पामी शकतो नथी.
जे एकला गुणनी वात करे छे ने दोषने नथी देखतो,
ते पण दोषने छेदी शकतो नथी, गुणने पामी शकतो नथी.
गुण अने दोष बंनेने यथार्थरूपे जे जाणे छे ते ज
गुणना आश्रये दोषने छेदीने गुण प्रगट करे छे.