Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 30 of 49

background image
: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : २७ :
छे तेने लक्षमां–अनुभवमां ले; तो तारा भवदुःखना आरा आवी जशे ने चैतन्यसुखनो
अपूर्वस्वाद तने आवशे. आवुं सुख जेमां अनुभवाय ते ज भगवान महावीरनो मार्ग छे.
चैतन्यनी सन्मुख थईने तेनो अनुभव करतां राग बहार रही गया ने ज्ञानपरिणति
अंदर अभेद थई गई; एटले त्यां रागादिभावो के भेदना विकल्पोरूप व्यवहार न रह्यो. आ
रीते शुद्ध आत्मानो अनुभव करतां सघळोय व्यवहार अभूतार्थ छे. आवुं तारुं आत्मतत्त्व
विद्यमान छे–ते सर्वज्ञपरमात्माए बताव्युं छे. वर्द्धमान भगवान अढी हजार वर्ष पहेलांं
दिव्यध्वनिथी भरतक्षेत्रमां आवो आत्मा प्रकाशता हता, अने अत्यारे पण मनुष्यक्षेत्रमां
विदेहमां श्री सीमंधरपरमात्मा वगेरे साक्षात् तीर्थंकर भगवंतो दिव्यध्वनिथी आवो ज आत्मा
प्रकाशी रह्या छे ने धर्मीजीवो तेवा आत्माने पोतामां अनुभवी रह्या छे. कुंदकुंदाचार्यदेवे त्यां
जईने सीमंधर परमात्मानी वाणी सांभळेली; पोते शुद्धात्माने साक्षात् अनुभवीने अपूर्व
आनंदरूप निजवैभव प्रगट कर्यो हतो; अने ते ज शुद्धात्मा तेमणे आ समयसारमां देखाडीने
भरतक्षेत्रना जीवो उपर मोटो उपकार कर्यो छे.
आत्माना शुद्धस्वभावने अनुभवमां लेनारो शुद्धनय भूतार्थ छे, तेनो आश्रय करवाथी
सम्यग्द्रष्टि थई शकाय छे. शुद्धनयवडे पोताना शुद्धस्वभावने ज्यां सुधी जीव न जाणे, अने
व्यवहारमां मग्न रहे एटले के पर्यायभेद–राग–विकल्पमां मग्न रहे त्यां सुधी साचो आत्मा
तेना ज्ञानमां के श्रद्धामां आवतो नथी एटले के सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. जीवे
अनादिथी शुद्धवस्तुने कदी जाणी नथी. शुद्धनयवडे शुद्धवस्तुने जाणे–अनुभवे त्यारे ज जीवनुं
कल्याण थाय. तेथी श्रीगुरुओए जीवोना हितने माटे शुद्धनयना ग्रहणनो उपदेश दीधो छे, ने
व्यवहारनुं अवलंबन छोडाव्युं छे.––आम करवाथी अंदर अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे.–
–ए ज धर्मनुं चिह्न छे. अंदर अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आव्या वगर धर्म थाय नहि.
रागनो, भेदना विकल्पनो अनुभव जीवने अनादिथी छे, अज्ञानथी तेने ज ते आत्मा
मानी रह्यो छे; भाई, तारो भगवान, तारो आत्मा, राग जेटलो नथी, विकल्पमां प्राप्त थई
जाय एवो तारो आत्मा नथी. आत्मा तो अनंत महिमानो भंडार छे. एने स्वसंवेदनमां
लेतां शुद्धनय प्रगटे छे ने सर्वे विकल्पोथी आत्मा छूटो पडी जाय छे.–अनंतगुणथी एकरूप,
एकरस पणे आत्मा अनुभवाय छे, तेमां अतीन्द्रियआनंद छे, ते ज सम्यग्दर्शन अने
जैनधर्मना प्राण छे.––ए ज वीरनाथनो सन्देश छे.