Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
सम्यक्त्वरूपे परिणमेला आत्मानो अनुभव
अनुभव माटे तुं पण आवा आत्मानो निश्चय कर
[अमदावाद : (ता. ८ थी १३ एप्रिल) समयसार गाथा ३८ उपर प्रवचनोमांथी]
वढवाणशहेरथी प्रस्थान करीने चैत्र वद नोमे पू. गुरुदेव
अमदावाद शहेर पधार्या; जिनमंदिरमां बिराजमान आदिनाथ
भगवानना उन्नत प्रतिमाजीनां भक्तिथी दर्शन कर्यां; तथा
वीतरागविज्ञान जैनपाठशाळानुं उद्घाटन कर्युं. पाटनगरमां
पाठशाळा चाले ते एक प्रशंसनीय वस्तु छे, ने गुजरात–सौराष्ट्रना
दरेक गामे पाठशाळा चालु करवा माटे ध्यान आपवुं अत्यंत जरूरी छे.
स्वागत बाद मंगलप्रवचनमां गुरुदेवे एकत्व–विभक्त आत्मानी
सुंदरता बतावीने तेनो महिमा कर्यो. प्रवचनमां समयसार गा. ३८
तथा गाथा ११नो भावार्थ वंचायो. अमदावादना हजारो जिज्ञासुओए
प्रेमथी लाभ लीधो.
आ देहथी भिन्न, अंदरना रागादिथी पण भिन्न, जे सहज ज्ञान–आनंदस्वरूप आत्मा
छे, तेनुं ध्यान करीने तेना श्रद्धा–ज्ञान कर्यां ते धर्मीजीव पोताना स्वरूपने एवुं अनुभवे छे के–
हुं एक शुद्ध सदा अरूपी, ज्ञान–दर्शनमय खरे;
कंई अन्य ते मारुं जरी, परमाणुमात्र नथी अरे! ३८
जुओ, समयसारनी आ ३८मी गाथा घणी ऊंची छे. आत्मा ज्यारे सर्वज्ञ
परमात्मा थाय त्यारे तेमने सर्वांगेथी “ एवो दिव्यध्यनि नीकळे छे; तेमां आत्माना
अनंत रहस्य आवे छे. ते झीलीने वीतरागी संतो जाते अनुभव करे छे ने शास्त्रो रचे
छे; तेमां भगवान अरिहन्त परमात्मानी वाणीनो सार छे.