Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
छे. अंतरमां चैतन्यना आनंदने देख्यो–अनुभव्यो ते ज हुं छुं. मारी चैतन्यजात राग
साथे मेळवाळी नथी. चैतन्य साथे तो अतीन्द्रियआनंदने वीतरागता शोभे; चैतन्य साथे
राग न शोभे. आवा आत्मानी अनुभूति थई त्यां ‘हुं ज परमेश्वर छुं’ एम धर्मी
निःशंक श्रद्धे छे.––आनुं नाम सम्यग्दर्शन.
सम्यग्द्रष्टि आत्मा सदाय आनंदमय अमृतने भोगवनार छे. अनाज वगेरेनुं
भोजन तो जड छे; अज्ञानी रागनां आकुळस्वादने वेदतो थको झेरनुं भोजन लेतो हतो;
ने भेदज्ञान थतां ज्ञानी रागथी पार अतीन्द्रियआनंदना अमृतनुं भोजन करे छे; सदाय
आनंदनुं ज भोजन करे छे. रागनुं भोजन (रागनो भोगवटो) ज्ञानीनी चेतनामां
एकक्षण पण नथी. बंध–अधिकारनी शरूआतमां ए वात करी छे के पोतानी सहज दशाने
प्रगट करीने नाचतुं–परिणमतुं ज्ञान सदा आनंदअमृतने भोगवे छे; ते अत्यंत उदार,
धीरुं, निराकुळ अने उपाधि वगरनुं छे. आवा ज्ञानरूपे धर्मीजीव परिणम्यो छे, ते
ज्ञानमां रागादि कोई परभाव जरापण नथी, परभावो तेनाथी बहार ने बहार ज रहे
छे, ज्ञानमां प्रवेशता नथी. ज्ञाननुं आवुं अचिंत्य सामर्थ्य छे के रागने जाणवा छतां पोते
रागथी अलिप्त रहे छे.
जे अप्रतिबुद्ध शिष्य, श्रीगुरुना उपदेशथी प्रतिबुद्ध थयो ते पोताना स्वरूपने केवुं
समज्यो? तेनुं आ वर्णन छे. प्रथम तो चैतन्यज्योतिस्वरूपे मारा आत्माने में मारा
स्वानुभवप्रत्यक्षथी जाण्यो. गति वगेरे विभावभावोथी मारुं एक चैतन्यस्वरूप भेदाई
जतुं नथी; मारुं चैतन्यस्वरूप विभावपर्यायोरूप थई गयुं नथी; गति वगेरे अनेक भावो
ते रूपे नहि थतो हुं मारा चैतन्यस्वरूपे सदा एक छुं. चारगतिरूप अशुद्ध अवस्थाओ के
नवतत्त्व संबंधी विकल्पो, तेमनाथी अत्यंत जुदो एकला ज्ञायकस्वभावरूप हुं मने
अनुभवुं छुं तेथी हुं शुद्ध छुं. ज्ञायकस्वभावथी एकत्व छे तेथी आत्मा शुद्ध छे. ‘एक’ मां
अशुद्धता न होय. बीजानो (रागादि परभावनो) संबंध लक्षमां ल्यो तो ज अशुद्धता
थाय छे. तेथी कहे छे के आत्माने राग–शरीरादि कर्मकृत भावोथी असंयुक्तपणुं होवा
छतां अज्ञानी पोताना आत्माने रागादिथी संयुक्त अनुभवे छे, ते पोताना आत्माने
अशुद्ध ज देखे छे; अने ते ज संसारनुं कारण छे. परभावोथी असंयुक्त एवा शुद्ध
एकत्व–विभक्त आत्माने देखवो–अनुभववो ते मोक्षनुं बीज छे. कुंदकुंदभगवाने
समयसार द्वारा आवा शुद्ध आत्मानो अनुभव करावीने महा उपकार कर्यो छे.