Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : १ :
सम्यग्दर्शन पक्षातिक्रांत छे
पू. गुरुदेव जामनगरथी चैत्रसुद दशमे वांकानेर पधार्या. चैत्र
सुद दशमे सोनगढना मानस्तंभनी प्रतिष्ठाने २०मुं वर्ष बेठुं, ते ज
दिवसे वांकानेरना जिनमंदिरमो चांदीना मानस्तंभनुं स्थापन पू.
बेनश्री–बेनना सुहस्ते (हंसाबेन मुगटलाल जगजीवन तरफथी)
थयुं. आत्माना सम्यक्भावमां अनंत सिद्धभगवंतोनी स्थापनारूप
सुंदर मंगळ गुरुदेव संभाळाव्युं. वांकानेर ए सम्यक्त्वनी
साधनाभूमि छे. सम्यक्त्वनी आ साधनाभूमिमां समयसार गाथा
१४४ द्वारा गुरुदेवे सम्यग्दर्शनने साधवानो अफर उपाय समजाव्यो.
श्रीगुरुमुखे तेनुं श्रवण करतां पोतानी स्वपरिचित वस्तुना श्रवण
जेवो आनंद थतो हतो. प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के नयपक्ष–पछी ते
गमे तेनो पक्ष हो–पण ते पक्षना विकल्पोवडे सम्यग्दर्शन थतुं नथी;
बहारना कोई पक्षनी वात तो दूर रहो, अंदर पोताना एक
आत्माना बे पडखामांथी कोई एक पडखाना पक्षना विकल्पमां जे
अटके छे ते सम्यक्त्वने पामतो नथी एटले के साचा आत्माने ते
देखातो नथी. समस्त नयोना पक्षथी जे पार छे, ने ज्ञानस्वभावमां
ज पोताना मति–श्रुतज्ञानने वाळीने शुद्धआत्माने जे अनुभवे छे ते
ज साचा आत्माने देखे छे अने ते ज जीव सम्यग्दर्शनादिरूपे परिणामे
छे. वांकानेरमां वीरनाथनो जन्मोत्सव पण आनंदथी उजवायो हतो;
ए दिवसे वांकानेरना जिनमंदिरमां वीरनाथप्रभुनी प्रतिष्ठाने १९ मुं
वर्ष बेठुं; गुरुदेवे सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्गनुं स्वरूप समजावीने
वीरनाथना मार्गने प्रसिद्ध कर्यो. अहीं ते प्रवचनो द्वारा वीरमार्गने
प्राप्त करतां मुमुक्षुने आनंद थशे.