Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : ३ :
करीने पछी ज्ञानने ईंद्रियो–तथा रागादिथी पाछुं वाळीने अंतरमां बधा ज्ञानने एकाग्र करे
छे ने निर्विकल्प आत्माने अनुभवे छे. आवा अपूर्व अनुभवनी आ वात छे. अनुभवनी
आवी वात सांभळवानुं पण महा भाग्यथी मळे छे. आत्मामां सम्यक्त्वनो नवो रंग
चडाववानी आ वात छे. एकवार आवा आत्मानो रंग चडी जाय ते जीव रागथी छूटो
पडीने ज्ञानस्वभावनो साक्षात् अनुभव करे ज. विकल्पोथी अत्यंत विरक्त थईने
ज्ञानस्वभावमां तन्मयपणे परिणम्यो ते पोते पोताने परमात्मापणे अनुभवे छे; ने आवो
अनुभव करनार जीव अल्पकाळमां साक्षात् परमात्मदशारूप मोक्षने पामे छे.
१४४ मी गाथा एटले आत्माना अनुभवनी गाथा
आ १४४ मी गाथा तो आत्माना अनुभवनी गाथा छे. आत्माने अनुभव
करनार, विकल्पातीत शुद्धआत्मा केवो छे ते अहीं बतावे छे.
नयना पक्षरूपे जे विकल्पो छे तेमां शुद्धता नथी, तेनाथी जुदुं पडीने अंतर्मुख
थयेलुं ज्ञान ज शुद्ध छे,–आवो नियम बतावीने ज्ञान अने विकल्पनुं तद्न जुदापणुं
समजाव्युं. बंनेनी जात ज जुदी छे. नवतत्त्वमां आत्मा केवो छे तेनुं स्वरूप ज्ञान ज नक्की
करे छे; राग तो जुदो रही जाय छे. रागने पोतानुं कार्य मानीने तेना कर्तृत्वमां अटकेलुं
ज्ञान, चैतन्यस्वरूप आत्मानो निर्णय करी शकतुं नथी. रागनो विकल्प कांई आत्मानी
सन्मुख थईने तेनो निर्णय करतो नथी, आत्मानी चैतन्य जातथी तेनी जात ज जुदी छे.
चैतन्यनो निर्णय ज्ञानवडे ज थाय छे. आ अनंतकाळमां अर्पूर्व एवुं पहेलांंमां पहेलुं
सम्यग्दर्शन थाय–ते वखतनी जीवनी दशानी वात छे. अहो, सम्यग्दर्शन धर्म केवो छे? ने
तेमां अंतरमां अनुभवनी क्रिया केवी छे? तेनुं अलौकिक स्वरूप अहीं वीतरागी संतोए
समजाव्युं छे. आवा अनुभवरूप थयेला आत्माने ज साचो आत्मा कहीए छीए; ते ज
सम्यग्दर्शनादि छे. जे कांई छे ते आ अनुभवस्वरूप एक आत्मा ज छे.
कुंदकुंदाचार्यदेव अनुभवना आनंदमां झुलनारा महान वीतरागी दिगंबर संत
बेहजार वर्ष पहेलांं आ भरतक्षेत्रमां थयां, तेओ विदेहक्षेत्रमां गया अने त्यां सीमंधर
परमात्मानी वाणी साक्षात् सांभळीने अहीं आव्या. तेओ भगवानना आडतिया तरीके
महाविदेहथी लावीने भगवानना आ सन्देश आपे छे; जेनाथी आत्मानुं सम्यग्दर्शन