Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : ५ :
करे छे. जगतनां बीजा तत्त्वो माराथी जुदां छे, तेमनी साथे मारे कांई प्रयोजन नथी, आ
देह पण जड छे–जुदो छे; अंदरना शुभाशुभभावो पण खरेखर हुं नथी. ‘हुं शुद्ध छुं’ ईत्यादि
विकल्परूप नयपक्ष ते पण मारुं स्वरूप नथी; विकल्पथी पार अनुभवमां आवतुं जे
ज्ञानमात्र स्वरूप ते ज हुं छुं.–आम मुमुक्षुजीव निर्णय करे छे.
जुओ, आवा आत्मानो जे निर्णय करावे एवा ज देव–गुरु–शास्त्रने ते मुमुक्षु माने
छे; पण आवा आत्मानो निर्णय न करावे ने विपरीत कहे–तेवा कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रने
मुमुक्षु माने नहि. आमां देशनालब्धि पण आवी गई; साचा देवगुरुए एम संभळाव्युं के
‘आत्मा तो ज्ञानस्वभाव छे, ज्ञानतत्त्व विकल्परूप नथी. आवुं भेदज्ञान करीने
ज्ञानस्वभावने नक्की कर.’
अहो, आनंदधाम मारो आत्मा, तेमां क््यांय विकल्पनी आकुळता नथी.–आवो
निर्णय करीने विकल्पथी जुदा ज्ञानने अनुभवमां ले. अहा, आवो निर्णय करवा जाय त्यां
परिणति ज्ञानस्वभावमां ज घूसी जाय, ने ज्ञानस्वभाव सिवाय बीजा कोई परभावमां तेनी
परिणति अटके नहि. ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो निर्णय करवामां रागनुं आलंबन नथी,
ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन छे. अहा, एकवार अंदर चैतन्यमां ऊतरीने आवो निर्णय तो
कर के ज्ञानस्वभाव ज हुं छुं. तारा ज्ञानस्वभावनी महानता अने गंभीरता लक्षमां लेतां ज
विकल्पथी तुं जुदो पडी जईश; ने तारो आत्मा ज तने परमात्मारूपे देखाशे. ए ज
सम्यग्दर्शन छे, ते ज समयसार छे.
अनुभव पहेलांंनी भूमिकामां विकल्प होवां छतां ज्ञाने तेनाथी अधिक थईने एम
निर्णयमां लीधुं छे के विकल्प हुं नथी, विकल्पथी पार अखंड ज्ञानतत्त्व हुं छुं अनेक
विकल्पोथी जुदो एक ज्ञानभाव हुं छुं. आम विकल्पना काळे विकल्पथी भिन्नता नक्की करवी
ते काम ज्ञाननुं छे, ने ते विकल्पथी अधिक छे, जुदुं छे. आम अंदरना वेदनमां ज्ञान अने
रागनी तद्न भिन्नता धर्मीने भासे छे.
ज्ञानस्वभावी आत्मानो जे निर्णय छे ते निर्णय करनारुं ज्ञान आत्माने विकल्पथी
जुदो आनंदस्वरूपे प्रसिद्ध करे छे. आत्मा ईंद्रियवाळो–रागवाळो छे एम ते ज्ञान प्रसिद्ध
नथी करतुं, पण विश्वथी भिन्न ज्ञान–आनंदस्वरूप परमात्मा हुं छुं–एम ते ज्ञान प्रसिद्ध करे
छे. ईंद्रियज्ञानमां के विकल्पमां एवी ताकात नथी के ते आत्माने परमात्मास्वरूपे प्रसिद्ध करे
छे. स्वतत्त्वनी प्रसिद्धिमां एटले के आनंदमय आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–अनुभवमां
रागनुं के ईंद्रियनुं अवलंबन नथी.