
देह पण जड छे–जुदो छे; अंदरना शुभाशुभभावो पण खरेखर हुं नथी. ‘हुं शुद्ध छुं’ ईत्यादि
विकल्परूप नयपक्ष ते पण मारुं स्वरूप नथी; विकल्पथी पार अनुभवमां आवतुं जे
ज्ञानमात्र स्वरूप ते ज हुं छुं.–आम मुमुक्षुजीव निर्णय करे छे.
मुमुक्षु माने नहि. आमां देशनालब्धि पण आवी गई; साचा देवगुरुए एम संभळाव्युं के
‘आत्मा तो ज्ञानस्वभाव छे, ज्ञानतत्त्व विकल्परूप नथी. आवुं भेदज्ञान करीने
ज्ञानस्वभावने नक्की कर.’
परिणति ज्ञानस्वभावमां ज घूसी जाय, ने ज्ञानस्वभाव सिवाय बीजा कोई परभावमां तेनी
परिणति अटके नहि. ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो निर्णय करवामां रागनुं आलंबन नथी,
ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन छे. अहा, एकवार अंदर चैतन्यमां ऊतरीने आवो निर्णय तो
कर के ज्ञानस्वभाव ज हुं छुं. तारा ज्ञानस्वभावनी महानता अने गंभीरता लक्षमां लेतां ज
विकल्पथी तुं जुदो पडी जईश; ने तारो आत्मा ज तने परमात्मारूपे देखाशे. ए ज
सम्यग्दर्शन छे, ते ज समयसार छे.
विकल्पोथी जुदो एक ज्ञानभाव हुं छुं. आम विकल्पना काळे विकल्पथी भिन्नता नक्की करवी
ते काम ज्ञाननुं छे, ने ते विकल्पथी अधिक छे, जुदुं छे. आम अंदरना वेदनमां ज्ञान अने
रागनी तद्न भिन्नता धर्मीने भासे छे.
नथी करतुं, पण विश्वथी भिन्न ज्ञान–आनंदस्वरूप परमात्मा हुं छुं–एम ते ज्ञान प्रसिद्ध करे
छे. ईंद्रियज्ञानमां के विकल्पमां एवी ताकात नथी के ते आत्माने परमात्मास्वरूपे प्रसिद्ध करे
छे. स्वतत्त्वनी प्रसिद्धिमां एटले के आनंदमय आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–अनुभवमां
रागनुं के ईंद्रियनुं अवलंबन नथी.