Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : ९ :
गुजरातनां प्रवचनो
सौराष्ट्रमां विहार बाद अमदावाद थईने
गुजरातमां विहार कर्यो, तेमां प्रथम दहेगामनां
प्रवचनो आपे गतांकमां वांच्या. त्यार बाद प्र.
वैशाख सुद ६ थी प्र. वै वद त्रीज सुधी रखियालथी
फत्तेपुर पहोंचतां सुधीनां प्रवचनो आप अहीं
वांचशो. मोटुं शहेर हो के न नानुं गामडुं हो–
चैतन्यरसनी धारा तो बधे एकसरखी ज वहे छे.
सम्यग्द्रष्टिनो अत्यंत मधुर चैतन्यस्वाद
(रखियाल–स्टेशन प्र. वै. सुद ६–७ समयसार गा. ४७)
दहेगाम बाद गुरुदेव रखियाल पधार्या. रखियाल–स्टेशन जेवा नाना स्थानमां
पण सुंदर जिनमंदिर शोभे छे. जिनेन्द्रदर्शन अने स्वागत बाद गुरुदेवे मंगल–प्रवचन
द्धारा चैतन्यतत्त्वनुं स्मरण करीने तेनो महिमा समजाव्यो. बपोरे समयसारनी ९७ मी
गाथा उपर प्रवचन थयुं.
आ जीव देहादिथी भिन्न चैतन्यवस्तु छे, तेनो स्वाद तो अतीन्द्रिय आनंदरूप
अत्यंत मधुर चैतन्यरस छे; पण रागादिना कर्तृत्वमां अटक्यो होवाथी अज्ञानीने
अनादिथी पोतानो चैतन्यनो साचो स्वाद आव्यो नथी, ने रागादिभावोना
आकुळतामय स्वादनो ज तेने अनुभव छे. भाई, तने तारा चैतन्यनो साचो स्वाद केम
आवे ते वात अहीं संतो तने बतावे छे. प्रथम तो रागनाय कर्तृत्व वगरनो
ज्ञानस्वभाव छे ते ओळखवो जोईए, तो ज चैतन्यनो साचो स्वाद आवे.
आवा आत्माने बहारमां बीजो कोई शत्रु के मित्र नथी; आत्मानो पोतानो
ऊंधो अज्ञानभाव ते ज शत्रु छे; ने पोताना स्वभावनो सम्यक्भाव ज मित्र छे. बीजा
कोईने मित्र के विरोधी मानवा ते तो भ्रम छे.