Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
स्वघरने छोडीने ते परघरमां जे भमे ते तो बहारचलो कहेवाय. बापु! स्वसमयपणुं ते
सुंदर छे, सुखरूप छे, ते तने शोभे छे. एवा स्वसमयपणानी उत्पत्ति रागादि
परभावना सेवनथी थाय नहि. (चांपानुं द्रष्टांत) जेम चांपा जेवो पुत्र एनी खानदान
माताना पेटे ज पाके, ए जयां–त्यां न पाके; तेम चैतन्यनी आनंद दशारूपी चांपो, ए ते
कांई रागना पेटमां पाकतो हशे? –ना. रागना सेवनथी चैतन्यना चांपा न पाके.
रागथी पार पार चिदानंदस्वभाव, तेनी अंतर्मुख परिणतिनी कुंखे ज चैतन्यना चांपा
पाके एटले के सम्यग्दर्शनादि थाय. आनुं नाम अपूर्व मांगळिक छे.
झींझवामां मांगळिक बाद बपोरना प्रवचनमां समयसारना पुण्य–पाप
अधिकारनो १०१ मो कळश वंचायो. तेमां अशुभ के शुभ ए बंनेथी ज्ञाननी भिन्नता
बतावी. जेम अशुभराग ज्ञानथी जुदी जात छे, तेम शुभराग पण ज्ञानथी जुदी जात
छे; शुभ ने अशुभ बंने रागभावो ज्ञानथी विपरीत छे माटे ते बंने भावो अज्ञानमय
छे, ज्ञान साथे तेनो मेळ नथी.
पुण्य–पापने ‘अज्ञानमय’ कह्या तेनो अर्थ शुं? जेने पुण्य–पाप थाय ते बधा
अज्ञानी होय–एम एनो अर्थ नथी. पण पुण्य–पापना जेटला भावो छे ते कोई
चैतन्यनी जातमांथी उत्पन्न थयेला नथी, चैतन्यना अबंधस्वभावथी ते बंध भावो
विरुद्ध छे, माटे ते अज्ञानमय छे. ज्ञानी तेने पोतानी ज्ञानदशाथी भिन्न जाणे छे.
विभावदशारूपी चांडालणी, तेना ज बंने पुत्रो छे; अशुभराग पण विभावरूप
चांडालणीथी उत्पन्न छे, तेम शुभराग–पुण्य पण विभावरूप चांडालणीथी ज उत्पन्न
छे, शुभ के पुण्यनी उत्पत्ति कांई चैतन्यमांथी नथी थती.
भाई, तारा चैतन्यतत्त्वने अनुभवतां, शुभाशुभ बंने वगर पण तने परम
अतीन्द्रिय आनंद अनुभवाशे. शुभराग छूटतां तारा आत्मामांथी कांई घटी नहि जाय,
पण ज्ञान पोते राग वगरनुं थईने आनंदरूपे खीली ऊठशे. मोक्षनो मार्ग चैतन्यना
अनुभवमांथी प्रगटे छे, रागमांथी नथी प्रगटतो.
पाप अने पुण्य बंने भावो जीवे अनंतवार कर्यां छे; पाप अने पुण्य बंनेनी
जात जुदी नथी, बंनेनी एक ज जात छे, बंने संसारमां ज कारण छे, बंनेनो अनुभव
दुःखरूप ज छे, बंनेनी उत्पत्ति पराश्रित एवी विभावपरिणति मांथी थाय छे; ज्ञानथी
ते बंनेनी जात जुदी छे, माटे ते अज्ञानमय छे. अनादिथी ते पुण्य–पापना अज्ञानमय
भावोरूपे ज पोताने अनुभवीने, जीव पोताना ज्ञान