Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : २१ :
स्वभावने भूली गयो छे, ने तेथी संसारमां स्वर्ग–नरकादि गतिमां रखडयो छे. तेने
आचार्यदेव समजावे छे के बापु! तारी चैतन्यचीज तो पाप अने पुण्य बंनेथी भिन्न
छे. पुण्य–पाप वगर आत्मा चैतन्यभावथी जीवनार छे. धर्मी पुण्य–पापथी भिन्न
ज्ञानने अनुभवता थका आत्माना परमअमृतने अनुभवे छे. –आवो अनुभव कर्ये ज
सम्यग्दर्शन थाय छे ने मोक्षमार्ग खूले छे.
अहा, ज्ञानना वेदनवडे एकवार पुण्य–पाप अने ज्ञाननी वच्चे भेदज्ञानरूपी
वीजळी पडी, ने बंने जुदा पाड्या, ते हवे कदी एक थवाना नथी. पुण्य–पापनो कोई
अंश कदी ज्ञानरूपे भासवानो नथी. ज्ञान ते रागादिथी छूटुं पड्युं ते ज्ञानपणे ज ज्ञानी
पोताने सदा अनुभवे छे. राग होय पण ते ज्ञानथी भिन्नपणे छे, एकपणे नहि; ते
ज्ञानना ज्ञेयपणे छे, ज्ञानना कार्यपणे नथी; ते बंधनी धारामां जाय छे, मोक्षमार्गनी
धारामां ते नथी आवतो. अरे, आवा ज्ञानने एकवार लक्षमां तो ल्यो.
भाई, जगतनी प्रतिकूळता आडे तारा चैतन्यने भूली न जा. अज्ञानथी तें
संसारना जे दुःखो भोगव्या तेनी पासे जराक प्रतिकूळता शुं हिसाबमां छे? अज्ञानथी
अनंत जन्म–मरण करवा पड्या, ते अज्ञाननो हवे नाश कर्यो त्यां आत्मानुं जन्म–
मरणरहित अमरपद भास्युं. हवे अमे अमर थया, हवे संसारनां जन्म–मरण अमे
नहि करीए. (अब हम अमर भये, न मरेंगे)
गृहस्थाश्रममां रहेलो जीव पण आवा आत्मानी श्रद्धा करी शके छे, ने ते जीव
मोक्षमार्गी छे, ते प्रशंसनीय छे. अने आत्मानी श्रद्धा वगरनो पंचमहाव्रती पण
मोक्षमार्गी नथी, पुण्य करवा छतां ते संसारमार्गमां ज ऊभो छे. पुण्य कांई मोक्षमार्ग
नथी. पुण्य–पापथी पार वीतरागी चैतन्यतत्त्वनां श्रद्धा–ज्ञान–आचरण ते ज मोक्षमार्ग
छे. अरिहंतभगवंतोए आवो मोक्षमार्ग जैनशासनमां उपदेश्यो छे.
आवा चैतन्यतत्त्वने ओळखीने जेणे सम्यग्दर्शन कर्युं तेने अमुक काळमां
चारित्रदशा पण आवे–आवे ने आवे ज; पण जेने आवुं सम्यग्दर्शन न होय तेने
चारित्रदशा कदी आवे नहि. चारित्रदशा तो महान आनंदना भोगवटारूप छे, रागनो
भोगवटो एमां नथी.
ज्ञान तो आनंदमां तन्मय थईने आनंदने ज भोगवनारुं होय; रागरूपी झेरनो
अनुभव तेमां न होय. अहो! आवा ज्ञानवंत चिन्मूर्ति सम्यग्द्रष्टिनी दशा कोई
अलौकिक अटपटी छे. बहारमां भले कदाच संयोग नरकनो होय, पण अंदर