Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
एना ज्ञानमां चैतन्यसुखरसनी गटागटी चाले छे; एनुं ज्ञान तो संयोगथी ने रागथी
पार सुखरसमां तरबोळपणे वर्ते छे. ए ज रीते बहारमां स्वर्गनो संयोग होय तोपण
ज्ञानीनुं ज्ञान तेनाथी अलिप्त छे. आवुं पुण्य–पापथी अलिप्त ज्ञान ते धर्म छे. ज्ञानथी
विरुद्ध एवो अशुभराग के शुभराग ते बंने खराब छे, बेमांथी एक्केय सारा नथी,
एक्केयमां सुख नथी, ने एक्केय जीवने मोक्ष माटे उपयोगी थता नथी. माटे पुण्य–पाप
बंनेने संसारनुं कारण जाणी, बंनेथी भिन्न एवा ज्ञानस्वरूपे पोताने ओळखवो–
अनुभववो ते धर्म छे, ते संसारथी बचावनार ने मोक्ष देनार छे.
सम्यग्ष्टिनुं आत्मवेदन ::: ज्ञायकभावनी उपासना
वैशाख सुद १२ ना रोज पू. गुरुदेव झींझवाथी हिंमतनगर पधार्या. गुजरातनी
जनताए हिंमतनगरमां उमंगभर्युं भव्य स्वागत कर्युं. प्रथम शहेरना जिनमंदिरमां
दर्शन कर्यां, बाद महावीरनगरना जिनमंदिरमां दर्शन कर्यां. मंदिर घणुं भव्य छे, नीचे
महावीरादि भगवंतो बिराजे छे, उपर शांतिनाथप्रभु केवळज्ञानसहित परम अतीन्द्रिय
आनंदना वेदनमां मशगुल ऊभा छे–ने जगतने बतावी रह्या छे के आ रीते जगतथी
निरपेक्षपणे आत्मा अनुभवाय छे.
जिनमंदिरनी पासे ज सुंदर स्वाध्यायमंदिर छे. तेमां मंगल–प्रचवन करतां
प्रवचनसारनी गा. ८०–८२ याद करीने कह्युं के अहा, अरिहंत भगवंतो रागथी अत्यंत
भिन्न एकला चैतन्यभावे परिणमी रह्या छे. आवा चैतन्यभावरूप अरिहंत देवना
द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळखतां पोताना आत्मानुं शुद्धचैतन्यस्वरूप पण ओळखाय छे,
ने मोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शनादि थाय छे. पछी शुद्धपयोगवडे तेमां लीन थतां
राग–द्वेषनो पण क्षय थईने, केवळज्ञान थाय छे. आ ज मोक्षनी रीत छे. बधाय
तीर्थंकरो आ ज विधिथी मोक्ष पाम्या छे, ने जगतने माटे आ ज उपदेश कर्यो छे.
अरिहंत भगवाने पोताना आत्माने जेवो शुद्ध जाण्यो छे ने अनुभव्यो छे, तेवो
ज आ आत्मानो शुद्धस्वभाव छे. आवो शुद्ध आत्मा केवो छे ते जाणवानी जेने धगश
छे तेवा शिष्यने तेनुं स्वरूप आचार्यदेव आ समयसारनी छठ्ठी गाथामां बतावे छे.
आत्माने आनंद आपे अने एना जन्म–मरणना अंत आवे–एवी आ वात समजवा
माटे अंदर घणी पात्रता होय छे; अरे, एनुं श्रवण करवामां पण