Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
अहा, रागथी भिन्न चैतन्यनी वात काने पडवी ते पण महाभाग्यथी मळे छे.
अने ते सांभळीने तेनो जेणे प्रेम कर्यो ने अनुभव कर्यो ते तो न्याल थई जाय छे,
चैतन्यना अपूर्व आनंदना अमृत तेने प्रगटे छे.
भाई, पूर्वे कदी सांभळी नथी, जाणी नथी एटले आ वात तने नवी लागे, पण
पूर्वे अनंता तीर्थंकरो आ वात कही गया छे, अनंता जीवो आवुं तत्त्व साधीने मोक्ष
पाम्या छे, ते ज आ वात छे. अने आ सत्य समजये ज जीवनुं कल्याण थाय छे. नवी
कहो के अनादिथी कहो, –सत्य आत्मस्वरूपनी आ वात छे, अने आ समज्ये ज जीवने
भवभ्रमणथी छूटकारो थाय तेम छे. माटे आ वातनुं बहुमान लावीने, लक्षमां लईने
समजवा जेवी छे.
पुण्य–पाप बंनेथी पार आत्मानी धर्मकथा
संतोना अंतरना नादनी आ वात छे.
प्र. वैशाख सुद पुनमे गुरुदेवे चोरीवाड पधार्या. उमंगभर्युं स्वागत थयुं. अहींनुं
जिनमंदिर सुंदर रळियामणुं छे; मूळनायक आदिनाथ भगवाननी आसपास धातुना
मोटा पटमां २४ भगवंतो, तेमज १६ स्वप्नो वगेरेनुं भाववाही दश्य छे. त्यां दर्शन
कर्यां बाद बाजुमां जैन पाठशाळानुं उद्घाटन गुरुदेवना मंगल हस्ते थयुं.
जैनबाळपोथीमां “ करीने गुरुदेवे वीतरागविज्ञान–पाठशाळानुं उद्घाटन कर्युं. बे–त्रण
हजारनी वस्तीवाळा आवा गाममां पण जैनपाठशाळा माटेनो उल्लास घणो प्रशंसनीय
छे, ने बीजा मोटा गामोने माटे अनुकरणीय छे. नाना गाममां पण मोटा शहेर जेवी
विशाळ प्रवचन–सभा थती हती, सेंकडो हरिजन भाई–बहेनो पण आवता हता.
मंगल–प्रवचनमां अनंतसिद्धोने याद करीने नमस्कार करतां गुरुदेवे कह्युं के आवा
अनंतसिद्धोने जे ज्ञान लक्षमां ल्ये छे ते ज्ञान रागथी छुटुं पाडीने स्वसन्मुख थाय छे ने
सिद्ध जेवा पोताना आत्माने ते अनुभवे छे; ते अपूर्व मंगळ छे.
प्रवचनमां समयसारनी ७२मी गाथा द्धारा शुभ–अशुभ रागथी भिन्न भगवान
आत्मा केवो छे ते समजाव्युं. शुभ–अशुभ ए तो बंने बंधनां कारण छे, ज्ञानस्वरूप
आत्मा ते बंनेथी जुदो छे. श्रीमद् राजचंद्र पण कहे छे के–