Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : २७ :
जे जे कारण बंधनां तेह बंधना पंथ;
ते कारण छेदक दशा मोक्षपंथ भव–अंत.
आत्मामां पूर्ण ज्ञान ने आनंदस्वभाव भरेलो छे; ते ईष्ट छे. अने शुभ अशुभ
रागभावो तेनाथी विपरीत होवाथी अनिष्ट छे–वेरी छे; तेने हणीने जेओ सर्वज्ञ थया
तेओ अरहिंत छे. ते अरिहंत भगवान जेवुं आ आत्मानुं शुद्धस्वरूप छे. ते सदाय
अत्यंत निर्मळ छे अने रागादिभावो मलिन छे, चैतन्यथी विपरीत छे.–आम
भेदज्ञानवडे आत्माना स्वभाव अने परभावने जुदा जाणे त्यारे ते जीव पोताने
ज्ञानपणे ज अनुभवे छे ने रागादि भावोने जुना जाणीने तेनो कर्ता थतो नथी. आवा
ज्ञानस्वभावना भान वगर अनंतकाळ जीवे संसारना दुःखमां गुमाव्यो.
वीत्यो काळ अनंत ते कर्म शुभाशुभमांय,
तेह शुभाशुभ छेदतां उपजे मोक्ष स्वभाव
.
जीव अनंतकाळथी संसारमां रखडयो, ते केम रखडयो? शुं एकला पाप करीने
रखडयो छे? ना, पाप अने पुण्य बंने करीकरीने जीव संसारमां रखडयो छे. संसारमां
एकलां पाप ज कर्यां छे ने पुण्य नथी कर्यां–एम नथी. पाप अने पुण्य बन्ने कर्यां छे,
पण ते पुण्य–पापथी जुदी चैतन्यवस्तु पोते कोण छे ते कदी जाण्युं नथी. एवा
चैतन्यतत्त्वने जाणे तो जाणे तो जीव पुण्य–पापरूप आस्रवोथी छूटो पडी जाय छे.
अहा! ज्यां ज्ञान थयुं के हुं तो ज्ञान छुं, ज्ञान तो शांतिस्वरूप छे, ने आ रागादिभावो
ज्ञानथी विपरीत छे, तेमां आकुळता छे;–एम ज्यां भेदज्ञान थयुं के ते क्षणे ज आत्मा
ते रागादिथी भिन्न ज्ञानपणे परिणमवा मांडे छे. ते ज्ञानमां आस्रवनो अभाव छे.
गुणगुणीभेदनो सूक्ष्म विकल्प ते पण आस्रवनुं लक्षण छे, ज्ञाननी जातथी ते
विपरीत छे. विकल्प हो ते जुदी वात छे, पण विकल्पने ज्ञाननी जातमां भेळववो ते
अज्ञान छे, पोताना शांत–चैतन्यने ते भूली जाय छे. ज्यारे आत्मा, पोताना
ज्ञानस्वभावने समस्त रागादिभावोथी जुदो ज्ञानमां ल्ये छे त्यारे तेना अंतरमां
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे, शांतिनुं झरणुं झरे छे. आवो अनुभव करवा
माटेनी आ धर्मकथा छे.
आत्मा चैतन्यमय, स्वयं पोते पोताने जाणे एवो छे. राग तो जडस्वभावी छे,
तेने पोतानी खबर नथी ‘हुं राग छुं’ ‘आ राग छे’ ने हुं ज्ञान छुं–एम