जड वस्तु पोते पोताने जाणती नथी, बीजो तेने जाणे, तेम रागादि पोते पोताने
जाणता नथी, ‘बीजो’ तेने जाणे छे. बीजो एटले रागथी जुदो, एवो ज्ञानस्वभावी
आत्मा स्व–परने जाणे छे; रागने जाणतां पोते रागरूप थतो नथी, ज्ञानरूप ज रहीने
रागने जाणे छे. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखवो ते ज आस्रवथी (संसारथी)
छूटवानी रीत छे.
ज्ञानभावने ज करे छे, रागने ज्ञानना कार्यपणे ते करतो नथी–आ ज्ञानीनुं लक्षण छे.
आवा ज्ञानस्वरूपे पोताने अनुभववो ते सीमंधरपरमात्मानो सन्देश छे, कुंदकुंदचार्यदेव
ते सन्देशो विदेहमां जईने अहीं लाव्या छे, ते ज अहीं कहेवाय छे. संतोना अंतरना
नादनी आ वात छे.
ते विरुद्धभाववडे आत्मानुं ज्ञान केम थाय? अचेतन–विकल्पमां एवी ताकात नथी के ते
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंदने पमाडे. शुभविकल्प–राग भले देव–गुरु–शास्त्र तरफनो हो,
पण ते कांई चैतन्यनी सजात नथी, तेना फळमां कांई मुक्ति के धर्म न मळे, तेना
फळमां तो संसार मळे. चैतन्यनी शांतिनो स्वाद कोईपण रागमां नथी. शांति अने
आनंदनुं झरणुं तो चैतन्यसरोवरमांथी वहे छे. –भाई! एकवार ज्ञान अने रागनी
अत्यंत भिन्नतानो निर्णय तो कर...... तेमां तने ज्ञाननो अद्भूत स्वाद आवशे, ने तुं
न्याल थई जईश.
आनंद उपजावनार छे; ने परतरफनी रागवृत्तिओ तो दुःख उपजावनारी छे. मंदरागरूप
शुभराग हो ते पण दुःखरूप ज छे, ते कांई सुखनो उपाय नथी. तेनाथी सर्वथा जुदुं जे
चैतन्यतत्त्व छे ते पोते सुखरूप छे, तेना संगे कदी दुःखनी उत्पत्ति थती नथी. आ रीते
आत्माना स्वभावने अने रागने तद्न भिन्नता छे. आवुं भेदज्ञान ते ज आस्रवने
रोकवानुं साधन छे. रागनी जराय अपेक्षा तेमां नथी एटले ज्ञानने राग साथे जराय
कर्ताकर्मपणुं, साधन–साध्यपणुं के कारण–कार्यपणुं नथी.