Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
ज्ञान ज जाणे छे. रागादि आस्रवोमां चेतकपणुं नथी, तेथी तेने जडस्वभाव कह्या. जेम
जड वस्तु पोते पोताने जाणती नथी, बीजो तेने जाणे, तेम रागादि पोते पोताने
जाणता नथी, ‘बीजो’ तेने जाणे छे. बीजो एटले रागथी जुदो, एवो ज्ञानस्वभावी
आत्मा स्व–परने जाणे छे; रागने जाणतां पोते रागरूप थतो नथी, ज्ञानरूप ज रहीने
रागने जाणे छे. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखवो ते ज आस्रवथी (संसारथी)
छूटवानी रीत छे.
रागनी उत्पत्ति चैतन्यभावमांथी थती नथी. चैतन्यभावमांथी तो चैतन्यभाव
ऊपजे. राग वखते रागथी जुदो चैतन्यभगवान बिराजे छे; तेने लक्षमां लेनार जीव
ज्ञानभावने ज करे छे, रागने ज्ञानना कार्यपणे ते करतो नथी–आ ज्ञानीनुं लक्षण छे.
आवा ज्ञानस्वरूपे पोताने अनुभववो ते सीमंधरपरमात्मानो सन्देश छे, कुंदकुंदचार्यदेव
ते सन्देशो विदेहमां जईने अहीं लाव्या छे, ते ज अहीं कहेवाय छे. संतोना अंतरना
नादनी आ वात छे.
अरे भाई, विकल्प तो चैतन्यनी जात नथी, अचेतन छे; तो शुं तेना वडे तने
चैतन्यनो अनुभव थशे? व्यवहारना जेटला विकल्पो छे ते बधाय चैतन्यथी विरुद्ध छे,
ते विरुद्धभाववडे आत्मानुं ज्ञान केम थाय? अचेतन–विकल्पमां एवी ताकात नथी के ते
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंदने पमाडे. शुभविकल्प–राग भले देव–गुरु–शास्त्र तरफनो हो,
पण ते कांई चैतन्यनी सजात नथी, तेना फळमां कांई मुक्ति के धर्म न मळे, तेना
फळमां तो संसार मळे. चैतन्यनी शांतिनो स्वाद कोईपण रागमां नथी. शांति अने
आनंदनुं झरणुं तो चैतन्यसरोवरमांथी वहे छे. –भाई! एकवार ज्ञान अने रागनी
अत्यंत भिन्नतानो निर्णय तो कर...... तेमां तने ज्ञाननो अद्भूत स्वाद आवशे, ने तुं
न्याल थई जईश.
राग अने ज्ञाननी भिन्नता जाणीने जीव त्यारे पोताना अंर्तस्वभावमां आवे
छे त्यारे तेने अपूर्व आनंदनुं वेदन थाय छे; आ रीते भगवान आत्मानो स्वभाव तो
आनंद उपजावनार छे; ने परतरफनी रागवृत्तिओ तो दुःख उपजावनारी छे. मंदरागरूप
शुभराग हो ते पण दुःखरूप ज छे, ते कांई सुखनो उपाय नथी. तेनाथी सर्वथा जुदुं जे
चैतन्यतत्त्व छे ते पोते सुखरूप छे, तेना संगे कदी दुःखनी उत्पत्ति थती नथी. आ रीते
आत्माना स्वभावने अने रागने तद्न भिन्नता छे. आवुं भेदज्ञान ते ज आस्रवने
रोकवानुं साधन छे. रागनी जराय अपेक्षा तेमां नथी एटले ज्ञानने राग साथे जराय
कर्ताकर्मपणुं, साधन–साध्यपणुं के कारण–कार्यपणुं नथी.